वर्णन कर्युं छे तेना उपर पू. गुरुदेवना विशिष्ट–अपूर्व प्रवचनोनो सार.
आत्मानुं स्वरूप शुं छे अने तेनी प्राप्ति कई रीते
थाय? आवी झंखनावाळा शिष्यने आचार्यदेव विध–
विधनयोथी आत्मानुं स्वरूप समजावे छे: तेनुं आ
वर्णन चाले छे.
अहीं ४७ नयोथी आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं छे तेमांथी ४३ नयो कहेवाई गया, हवे ४ नयो बाकी छे;
परमाणु छूटो पडे तेमां ते परमाणु बीजा परमाणुथी छूटो थवारूप द्वैतने पामे छे; तेम व्यवहारनयथी आत्माना
बंधने विषे कर्म साथेना संयोगनी अपेक्षा आवती होवाथी द्वैत छे अने आत्माना मोक्षने विषे कर्मना वियोगनी
अपेक्षा आवती होवाथी त्यां पण द्वैत छे.
निमित्त छे, ने मोक्षमां कर्मना अभावनुं निमित्त छे. आ रीते व्यवहारथी बंध अने मोक्ष बन्नेमां आत्माने
पुद्गलकर्मनी अपेक्षा आवे छे तेथी ते द्वैतने अनुसरनारो छे–एम कह्युं छे. परंतु ते द्वैतने अनुसरवानो धर्म
आत्मानो पोतानो छे, कांई कर्मने लीधे ते धर्म नथी. पोतानी पर्यायमां