Atmadharma magazine - Ank 144
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: आसो: २४८१ : २९३ :
“आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?”
[२३]
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां आचार्यदेवे ४७ नयोथी आत्मद्रव्यनुंध
वर्णन कर्युं छे तेना उपर पू. गुरुदेवना विशिष्ट–अपूर्व प्रवचनोनो सार.
(अंक १४३ थी चालु)
जेने आत्मस्वरूप जाणीने तेनी प्राप्ति करवा माटे
लगनी लागी छे एवो शिष्य पूछे छे के हे प्रभो!
आत्मानुं स्वरूप शुं छे अने तेनी प्राप्ति कई रीते
थाय? आवी झंखनावाळा शिष्यने आचार्यदेव विध–
विधनयोथी आत्मानुं स्वरूप समजावे छे: तेनुं आ
वर्णन चाले छे.
[४] व्यवहार नये आत्मानुं वर्णन

अहीं ४७ नयोथी आत्मद्रव्यनुं वर्णन कर्युं छे तेमांथी ४३ नयो कहेवाई गया, हवे ४ नयो बाकी छे;
प्रथम व्यवहार अने निश्चय ए बे नयो छे अने पछी छेल्ले अशुद्धनय अने शुद्धनयथी वर्णन छे.
व्यवहारथी जोतां आत्मद्रव्य बंध अने मोक्षने विषे द्धैतने अनुसरनारुं छे. जेम परमाणुना बंधने विषे
ते परमाणु अन्य परमाणु साथे संयोग पामवारूप द्वैतने पामे छे, अने परमाणुना मोक्षने विषे–एटले के एक
परमाणु छूटो पडे तेमां ते परमाणु बीजा परमाणुथी छूटो थवारूप द्वैतने पामे छे; तेम व्यवहारनयथी आत्माना
बंधने विषे कर्म साथेना संयोगनी अपेक्षा आवती होवाथी द्वैत छे अने आत्माना मोक्षने विषे कर्मना वियोगनी
अपेक्षा आवती होवाथी त्यां पण द्वैत छे.
जुओ, कर्मथी निरपेक्ष एकला परम चैतन्यस्वभावने ज लक्षमां लईने जुओ तो भगवान आत्मा
त्रिकाळ एकरूप, बंध–मोक्ष रहित छे. परंतु पर्यायमां बंध तेम ज मोक्ष छे, अने तेमां बंधमां कर्मना सद्भावनुं
निमित्त छे, ने मोक्षमां कर्मना अभावनुं निमित्त छे. आ रीते व्यवहारथी बंध अने मोक्ष बन्नेमां आत्माने
पुद्गलकर्मनी अपेक्षा आवे छे तेथी ते द्वैतने अनुसरनारो छे–एम कह्युं छे. परंतु ते द्वैतने अनुसरवानो धर्म
आत्मानो पोतानो छे, कांई कर्मने लीधे ते धर्म नथी. पोतानी पर्यायमां