वखते आत्मा कर्मना अभावने अनुसरे छे. पण कर्ममां एवो धर्म नथी के ते बळजोरीथी आत्माने अनुसरावे.
जेटलो कर्मनो उदय आवे तेटला प्रमाणमां आत्माए तेने अनुसरवुं ज पडे–एम नथी. कर्मना उदयने न
अनुसरतां पोताना स्वभावने अनुसरे तो मोक्षनुं साधन थाय ने मोक्षदशा प्रगटे, ते मोक्षमां आत्मा कर्मना
अभावने अनुसरे छे. स्वभावने न अनुसरतां कर्मने अनुसरे तो बंधन थाय छे, ने कर्मने न अनुसरतां
स्वभावने अनुसारे अर्थात् कर्मना अभावने अनुसरे–तो मोक्ष थाय छे. आ रीते बंधमां कर्मना सद्भावनुं
निमित्त छे ने मोक्षमां कर्मना अभावनुं निमित्त छे, एम जाणवुं जोईए. बंध के मोक्षनी अवस्थारूप परिणमन
तो आत्मा पोते एकलो ज करे छे, मात्र तेमां कर्मना सद्भाव के अभावरूप निमित्तनी अपेक्षा आवे छे, तेथी
व्यवहारनये आत्मा द्वैतने अनुसरनार छे–एम कह्युं छे; परंतु कर्म आत्माने बंध–मोक्ष करावे छे–एवो, एनो
अर्थ नथी. निश्चयथी तो आत्मा राग करे ने व्यवहारथी कर्म राग करावे–एम पण नथी. आत्मा पोते राग करे
त्यारे कर्मने अनुसरे छे, स्वभावने अनुसरीने राग न थाय; माटे रागमां कर्मना निमित्तनी अपेक्षा छे तेनुं
ज्ञान करवुं ते व्यवहारनय छे, परंतु कर्म राग करावे छे–एम मानवुं ते तो भ्रम छे. प्रवचनसारनी १२६ मी
गाथामां आचार्यदेवे ए वात स्पष्ट करी छे के अज्ञानदशामां के ज्ञानदशामां, संसारमां के मोक्षमां, आत्मा पोते
एकलो ज कर्ता छे.
राग–द्वेष करवानी तेनी भावना तो नथी?
छे; कर्मनो उदय तेने पराणे रागद्वेष करावे छे–एम नथी. राग–द्वेष करवानी धर्मीने भावना नथी, भावना तो
स्वभावने ज अनुसरवानी छे, परंतु अस्थिरताथी हजी राग–द्वेष थाय छे ते कर्मने अनुसरीने थाय छे,–एम ते
जाणे छे, ने स्वभावनी द्रष्टिना जोरे क्षणे क्षणे तेने कर्मनुं अवलंबन तूटतुं जाय छे ने स्वभावनुं अवलंबन
वधतुं जाय छे, ए रीते स्वभावनुं पूर्ण अवलंबन थतां मोक्ष थशे, त्यारे आत्मा कर्मना अभावने अनुसरशे.
आ रीते व्यवहारे बंध तेम ज मोक्षमां आत्मा द्वैतने अनुसरे छे.
द्रष्टिमां तो निरपेक्ष ज्ञायकस्वभावनुं अवलंबन वर्ते छे ने हजी साधक दशामां कंईक राग–द्वेष थाय छे तेटलुं
कर्मनुं अवलंबन छे. जेटलो राग छे तेटलुं कर्मनुं निमित्त छे एम ते जाणे छे अने स्वभावना अवलंबने कर्मना
निमित्तनो अभाव थतो जाय छे तेने पण ते जाणे छे. अहीं बंध अने मोक्षमां आत्मा सिवाय बीजानी अपेक्षा
आवी माटे तेमां व्यवहारे द्वैत कह्युं.
थाय छे तेटलुं बंधन छे, अने ते बंधनमां कर्मना निमित्तनी अपेक्षा आवे छे, तेने साधक व्यवहारनयथी जाणे
छे; अबंध स्वभावनी द्रष्टि राखीने बंधनने अने तेना निमित्तने ते जाणे छे. अबंधस्वभावनी द्रष्टि विना
अज्ञानीने तो बंधननुं ज्ञान पण साचुं थतुं नथी.
बंधमां ने मोक्षमां द्वैतने अनुसरनारुं छे; बीजा परमाणुनी अपेक्षा वगर तेने बंध–मोक्ष कही शकाय नहि, तेम
आत्माना बंध के मोक्षने लक्षमां लेतां तेमां कर्मनी अपेक्षा आवे छे, बंध अने मोक्ष तो आत्मा पोते स्वतंत्रपणे
करे छे पण तेमां कर्मना सद्भावनी के अभावनी अपेक्षा आवे छे तेथी व्यवहारनये आत्मा बंध–मोक्षमां