Atmadharma magazine - Ank 145
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष तेरमुंः सम्पादकः कारतक
अंक पहेलो रामजी माणेकचंद दोशी २४८२
“प्रभुजी! तारा पुनित पगले....आवीए छीए”
२४८१ वर्ष पहेलां पावापुरी धाममां
वर्द्धमान भगवान अभूतपूर्व सिद्धपदने
पाम्या...भव्य जीवोनुं परम इष्ट अने अंतिम
ध्येय एवा मोक्षपदने भगवान पाम्या..
‘अहो! आजे भगवान अनादि–
संसारथी मुक्त थईने सादि–अनंत सिद्धपदने
पाम्या, ने भगवानना युवराज गौतम गणधर
केवळज्ञान पाम्या’ ए सांभळीने कया मुमुक्षुनुं
हैयुं आनंदथी न नाची ऊठे!!
अहो! भगवान! स्वाश्रय वडे आप
ज्ञानसंपदाने पाम्या, अने अमने पण
ज्ञानसंपदानी प्राप्तिनो ज उपदेश आपीने
आप मुक्तपुरीमां सीधाव्या....हे प्रभो! अमे
ते उपदेश झीलीने, ज्ञानसंपदा तरफ झुकीने,
आपने नमस्कार करीए छीए, ने आपना
पंथे..... आपना पुनित पगले आवीए छीए.
प्रभुजी! तारा पगले पगले मारे आववुं रे...
प्रभुजी! बीजुंः मारे जोवानुं नहि काम...
मारा नाथ! हैडामां नित्य वसो रे...
*
वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्रण रूपिया १४प चार आना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)