Atmadharma magazine - Ank 145
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म
तेरमा वर्षना प्रारंभे......
* भगवानश्री सीमंधर–महावीर आदि पंचपरमेष्ठी भगवंतोने, परम उपकारी गुरुदेवने तेम
ज सर्वे आराधक संतोने, तथा श्री जिनवाणीदेवीने, नुतनवर्षना मंगलाचरणमां अतिशय भक्तिपूर्वक
अभिवंदना करीए छीए. तेम ज सर्वे आत्मार्थी–मुमुक्षु साधर्मीजनोने वात्सल्यपूर्वक अभिनंदन करीए
छीए.
* आजे आपणुं ‘आत्मधर्म’ बार वर्ष पूरा करीने तेरमा वर्षमां प्रवेश करे छे. आत्मधर्म
द्वारा पण अनेक भव्य जिज्ञासु जीवो पू. गुरुदेवनी अमृतरसझरती वाणीनुं होंसेहोंसे पान करे छे.
आपणुं आत्मधर्म ‘मासीक’ छे, एटले ए तो सहेजे समजी शकाय एवुं छे के, पू. गुरुदेवनी नित्य
वरसती वाणीमां जेटलुं आवे ते बधुंय तो आत्मधर्ममां समाविष्ट न ज थई शके, एटले अमुक खास
खास विषयो चूंटीने ‘आत्मधर्म’ मां अपाय छे. परंतु विशाळ वांचकवर्गने लक्षमां राखीने, आत्मार्थी
अने जिज्ञासु जीवोने जे खूब ज उपयोगी हितकारी होय एवा ज विषयो चूंटीचूंटीने आपवामां आवे
छे. आम छतां वांचकवर्गने संपादन शैलिमां कांई नवीन फेरफार करवा जेवी सूचना करवी होय तो
संपादक पर मोकली आपे.
* जिज्ञासु वांचको जाणे ज छे के आ आत्मधर्म शुद्ध आध्यात्मिक जन पत्र छे....अने ते
जिज्ञासु पाठकोने जगतना किलष्ट वातावरणथी दूर लई जईने आत्मिक–शांतिना मार्ग तरफ आंगळी
चींधे छे. संसारमां चारे तरफ ज्यारे अत्यंत किलष्ट अने हळहळतुं वातावरण घूघवाट करी रह्युं छे
त्यारे पण, आत्माने जगतथी जुदो पाडीने आत्मिक शांति प्राप्त करवानो अपूर्व कल्याणकारी राह
परमपूज्य गुरुदेव आपणने बतावी रह्या छे–ते आपणुं महान सौभाग्य छे. हे साधर्मी बंधुओ! पूज्य
गुरुदेवे बतावेला आ पावन पंथने ओळखो अने संसारना हळहळता वातावरणथी छूटीने आत्मिक
शांति प्राप्त करवा माटे ते पंथने अनुसरो.
–संचालको.