एकेक आत्मामां परिपूर्ण ज्ञानसामर्थ्य भर्युं छे, तेमांथी ज सर्वज्ञता व्यक्त थाय छे. अंतरनी स्वभावशक्तिने
प्रतीतमां लईने तेनुं अवलंबन करवाथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र अने परमात्मदशा प्रगटे छे. पण आवा परमार्थ
स्वभावने जीवे कदी लक्षमां लीधो नथी.
लक्षमां लेतां ते जणाय छे. तेम आत्मामां सर्वज्ञता अनादिथी व्यक्त नथी पण नवी प्रगटे छे. ते सर्वज्ञता प्रगटया
पहेलां अल्पज्ञता वखते पण सर्वज्ञ थवानी ताकात आत्माना स्वभावमां नित्य पडी छे. अंर्त स्वभावनी सन्मुख
थईने प्रतीत अने अनुभव करतां ख्यालमां आवे छे के अहो! सर्वज्ञतानुं सामर्थ्य मारामां ज भर्युं छे, तेमांथी मारी
सर्वज्ञता व्यक्त थाय छे. आवा अंर्तस्वभावने प्रतीतमां लईने तेनुं अवलंबन करतां सर्वज्ञता प्रगटी ते सर्वज्ञनी
वाणीमां ईच्छा विना सहज उपदेश नीकळ्यो, तेमां कहे छे केः अरे जीव! तें तारा परमानंद स्वरूपने अनादिथी
लक्षमां लीधुं नथी, परमात्मदशा प्रगट थवानी ताकात मारामां ज पडी छे–एवी प्रतीति कदी करी नथी, अने पूर्वे
सत्समागमे यथार्थ रुचिपूर्वक तेनुं श्रवण पण कर्युं नथी. सत्यनी वात तो काने पडी, पण अंतरमां तेनी रुचि करीने
स्वभावनुं लक्ष न कर्युं, तेथी तेनुं श्रवण कर्युं एम पण अमे कहेता नथी. खरेखर श्रवण त्यारे कर्युं कहेवाय के संतो
जेवो आत्मस्वभाव कहेवा मांगे तेवो पोते लक्षमां लईने तेनी रुचि अने प्रतीति करे. भाई, तारो आत्मा
ज्ञानानंदस्वभाव छे–अने तुं शुद्धनयथी द्रष्टिमां ले. तारो ज्ञानस्वभाव बहारमां परनुं कांई कार्य करे एम कदी बनतुं
नथी. ईच्छा होय छतां ते प्रमाणे शरीरादि परचीजनां कार्य बनता नथी. वहाली स्त्री मरती होय त्यां तेने
बचाववानी ईच्छा होवा छतां ते मरी जाय छे, शरीरमां रोग थवानी ईच्छा न होवा छतां रोग थाय छे; आ रीते
ईच्छानुं कार्य परमां आवतुं नथी, तेम ज ते ईच्छा जीवनो स्वभाव पण नथी; ईच्छा वडे अंर्तना स्वभावनी
प्राप्ति थती नथी. इच्छाथी पार हुं ज्ञानानंद स्वरूप छुं, संयोगो माराथी जुदा छे, ते संयोगोमां मारुं कार्य नथी–
आवो निर्णय कर्या वगर जीवनी विपरीत मान्यता टळे नहि, ने विपरीतता टळ्या वगर जीवने शांति थाय नहि.
स्वभावनो निर्णय जीवे पूर्वे एक सेकंड पण नथी कर्यो तेथी ते अपूर्व छे. ए सिवाय बीजुं बधुं पूर्वे करी चूक्यो छे,
पण तेनाथी चार गतिनुं परिभ्रमण मटयुं नहि, ते कांई अपूर्व नथी.
स्वभावनी ताकात छे, जीवने लईने तेनुं कार्य थाय एम बनतुं नथी. पण अज्ञानी स्व–परनी भिन्नताने भूलीने
परनां कार्य हुं करुं एवुं अभिमान करे छे. पण भाई, एमां तारी मोटाई नथी, तुं तो ज्ञानस्वभाव छो–ते
स्वभावनी महत्ताने लक्षमां तो ले. तारा चैतन्य स्वरूपनी महत्ताने लक्षमां लीधा वगर तुं संसारमां रखडयो.
जगतना लोको भेगा थईने तारी प्रशंसा करे के अभिनंदन–पत्र आपे एमां तारा आत्मानुं कांई हित नथी; पण
पोताना चिदानंद स्वभावनी अभिमुख जईने तेना अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव करवो ते ज आत्मानुं साचुं
अभिनंदन छे. अरे प्रभो! तने तारा स्वभावनुं साचुं बहुमान ज आव्युं नथी अने परना मानमां तुं रोकाई गयो
छो. पण तारा स्वभावनो परम महिमा छे, जे सर्वज्ञ भगवंतो थया तेओ आत्मामांथी ज थया छे अने तारा
स्वभावमां पण तेवी ताकात पडी छे. आवा स्वभाव सामर्थ्यनुं बहुमान कर, अने ते स्वभावनी सन्मुख थईने
तारा स्वभावना आनंदनुं वेदन करीने तारा आत्मानुं अभिनंदन कर, तेमां ज तारुं हित छे, आ सिवाय जगतना
लोको भेगा थईने अभिनंदननो कागळ आपे एमां कांई हित नथी.
कारतकः २४८२