Atmadharma magazine - Ank 146
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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साधकपणुं के संसार–मोक्ष ए कांई सिद्ध थतुं नथी. माटे बंने प्रकारोने जेम छे तेम जाणवा जोईए. ज्ञानमां मतिज्ञान
वगेरे विसद्रश पर्यायो छे; तेमज सद्रश एकरूप कारणस्वभावज्ञान पण छे, ने तेना अवलंबनथी केवळज्ञान खीले छे;
आवा भेदो जाणवा–ते जाणीने शुं करवुं सर्वज्ञ कथित आ भेदोने जाणीने जे जीव परभावोने छोडे छे ने
निजस्वभावमां एकाग्र थाय छे,.....अंर्तमुख थईने स्वभावमां ऊंडो.....ऊंडो....ऊतरी जाय छे, तेने मोक्षदशा खीली
जाय छे. कारणस्वभावमां ऊंडो ऊतरी गयो त्यां केवळज्ञानरूप कार्य प्रगटी जाय छे. जुओ, आमां त्रिकाळी कारण,
मोक्षमार्ग अने मोक्ष ए त्रणे आवी गया. धु्रव कारणना आश्रये जे मोक्षदशा थई ते सादि–अनंत मंगळरूप छे.
परम शरणभूत कारणस्वभाव–प्रदर्शक सद्गुरुदेवनो जय हो.
ज्ञान
– सर्वज्ञनुं अने साधकनुं –
श्री प्रवचनसार गा. ३६ उपरना प्रवचनमांथी अद्भुत न्याय.......
(वीर सं. २४८१ वैशाख सुद १४)
*
आत्मा ज्ञानस्वभावी वस्तु छे. ते ज्ञान पोते पोताना स्वभावनो आश्रय करीने परिणमतां सर्वज्ञता प्रगटे
छे. ते सर्वज्ञना ज्ञानमां जगतना समस्त पदार्थो जणाय छे. ज्ञान–ज्ञेयने परस्पर निमित्त–नैमित्तिकपणुं छे, एटले
केवळज्ञानमां जगतना बधा ज्ञेयो निमित्त छे, ने जगतना बधा ज्ञेयोने केवळज्ञान निमित्त छे.
जुओ, अहीं आत्माना ज्ञानस्वभावनी ओळखाण करावे छे. आत्मा ज्ञानस्वभाव छे. ज्ञान सर्व ज्ञेयोने
निमित्त, अने सर्व ज्ञेयो ज्ञानने निमित्त,–आम ज्ञान अने ज्ञेयना ज निमित्तनैमित्तिकसंबंधनी वात करी,–केमके ते
तो स्वभाव छे, ज्ञान–ज्ञेयनो निमित्तनैमित्तिक संबंध तो सिद्धभगवाननेय छे;
–पण, विकार अने कर्मनो जे निमित्तनैमित्तिक संबंध छे तेनी वात अहीं नथी लीधी, केम के ते आत्मानो
स्वभाव नथी. विकारने पण जाणवानो आत्मानो स्वभाव छे, पण विकारने करवानो आत्मानो स्वभाव नथी.
पूरुं ज्ञान ते बधा ज्ञेयोने निमित्त, ने बधा ज्ञेयो ते पूरा ज्ञानमां निमित्त आवो निर्णय करे तो आत्माना
ज्ञानस्वभावनो निर्णय थई जाय; कोई परज्ञेय इष्ट ने कोई ज्ञेय अनीष्ट एवो भेद न रहे.
पोताना आवा ज्ञानस्वभावनी प्रतीत होवा छतां साधकदशामां राग पण होय छे, पण साधक तो तेनो पण
खरेखर ज्ञाता ज छे. ते जाणे छे के जेवो सर्वज्ञना ज्ञाननो स्वभाव छे तेवो ज मारा ज्ञाननो स्वभाव छे, सर्वज्ञनुं
ज्ञान पूरुं छे ने मारुं ज्ञान अधूरुं छे एटलो ज फेर छे; पण ज्ञाननी जात तो एक ज छे, जेम सर्वज्ञनुं ज्ञान रागथी
जुदुं छे तेम मारुं ज्ञान पण रागथी जुदुं ज छे. मारुं ज्ञान ज्ञानपणे ज परिणमे छे, रागपणे नथी परिणमतुं; अने
राग ज्ञेयपणे परिणमे छे पण ज्ञानपणे नथी परिणमतो.–आ रीते ज्ञान अने रागनी अत्यंत जुदाई छे.