Atmadharma magazine - Ank 147
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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हिन्दी मां नवुं प्रकाशन
ज्ञानस्वभाव और ज्ञेयस्वभाव
* * *
आ पुस्तकमां क्रमबद्धपर्याय संबंधी पू. गुरुदेवनां अतिशय
महत्वनां तेर प्रवचनो प्रसिद्ध थयां छे; अने ते उपरांत ए विषयने
लगतां बीजा पण प्रवचनोनो आ पुस्तकमां संग्रह करवामां आव्यो
छे. आत्मानो ज्ञायकस्वभाव बतावीने अंतर्मुख द्रष्टि करावनारां पू.
गुरुदेवना आ प्रवचनो खास स्वाध्याय करवा योग्य छे. आमां
प्रसिद्ध थयेलां प्रवचनो आत्मधर्म मासिकमां आवी गयां छे. आ
पुस्तक मात्र हिंदीमां ज प्रसिद्ध थयुं छे.
पृष्ठ संख्याः ३७६
मूल्यः २–८–०
–० प्राप्ति स्थान ०–
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर
सोनगढ (सौराष्ट्र)
मुद्रकः जमनादास माणेकचंद रवाणी, अनेकान्त मुद्रणालयः वल्लभविद्यानगर (गुजरात)
प्रकाशकः श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, वल्लभविद्यानगर (गुजरात)