वर्ष तेरमुं : सम्पादक: महा
अंक चोथो रामजी माणेकचंद दोशी सं. २०१२
आ छे गुरुदेवनी घरगथ्थु शैलीनो एक नमूनो
* जेम चणाना स्वभावमां मीठाशनी ताकात भरी छे;
* परंतु कचाशने लीधे ते तूरो लागे छे, ने वाववाथी ऊगे छे;
* अने शेकतां तेना स्वभावनो मीठो स्वाद प्रगटे छे, ने पछी ते ऊगतो नथी.
–तेम–
* आत्मामां मीठाश एटले अतीन्द्रियआनंद शक्तिरूपे भर्यो छे;
* पण, ते शक्तिने भूलीने ‘रागादि ते हुं, शरीर ते हुं’ एवी अज्ञानरूपी
कचाशने लीधे तेने पोताना आनंदनो अनुभव नथी पण आकुळतानो
अनुभव छे, ने जन्म–मरणमां ते अवतार धारण करे छे.
* पोताना स्वरूपसन्मुख थईने तेमां एकाग्रतारूप अग्नि वडे शेकतां (चैतन्यनुं
प्रतपन थतां) स्वभावना अतीन्द्रियआनंदनो स्वाद आवे छे ने पछी तेने
अवतार थतो नथी.
आ चणानुं द्रष्टांत सेंकडोवार पू. गुरुदेवे प्रवचनोमां आप्युं छे... तद्दन
घरगथ्थु सहेली पद्धतिथी समजाववानी प. गुरुदेवनी केवी विशिष्ट शैली
छे–ते आ उपरथी ख्यालमां आवशे.
वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)