Atmadharma magazine - Ank 148
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: ५६ : आत्मधर्म : महा : २०१२ :
सुवर्णपुरी समाचार
* परम पूज्य गुरुदेव सुखशांतिमां बिराजे छे. सवारना प्रवचनमां श्री प्रवचनसार वंचाय छे, तेमां
हालमां १७२मी गाथाना ‘अलिंगग्रहण’ ना वीस बोल उपर अद्भुत आत्मस्पर्शी प्रवचनो थया... बपोरे श्री
मोक्षप्राभृत वंचाय छे. आ उपरांत भक्ति–चर्चा वगेरे कार्यक्रम नियम मुजब चाले छे.
* सोनगढनुं सीमंधर भगवाननुं जिनमंदिर भक्ति वगेरेमां टूंकुं पडतुं, तेने मोटुं कराववानुं काम चाली
रह्युं छे. मोटुं जिनमंदिर घणुं भव्य अने रळियामणुं थशे. जिनमंदिरमां काम चालतुं होवाथी हालमां भक्ति
समवसरणमां थाय छे.
* गुजराती–पंचास्तिकाय छापवानी शरूआत थई छे.
* ‘आत्मधर्म’ मासिक अत्यार सुधी दर महिनानी सुद बीजे प्रसिद्ध थतुं, तेने बदले पोस्टखातानी
व्यवस्था अनुसार हवेथी दरेक अंग्रेजी महिनानी पहेली तारीखे प्रसिद्ध थशे. एटले ग्राहकोने त्रीजी तारीखे
लगभगमां मळशे.
भारतवर्षीय दि. जैन विद्वत्परिषदनी कार्यकारिणी सभानी वार्षिक बेठक आ वर्षे सोनगढमां पू.
गुरुदेवना सान्निध्यमां थवानुं नक्की थएल छे, अने विद्वत्परिषदना मंत्रीजी तरफथी तेनी स्वीकृति आवी गएल
छे, ते माटे महा वद १४ थी फागण सुद एकम (मार्च ११–१२–१३) सुधीना दिवसो नक्की करवामां आव्या छे.
समाजना विद्वानो पू. गुरुदेवना सीधा परिचयमां आवे ने गुरुदेवना उपदेशनुं हार्द पकडे–ते हेतुथी जैन
स्वाध्याय मंदिर तरफथी आ बेठक योजवामां आवी छे.
वैराग्य समाचार
सोनगढना गोगीदेवी ब्रह्मचर्याश्रममां पोष सुद एकमना रोज मोटाबेननां नानां पुत्री (मगनलाल
त्रिभुवनदास चुडगरनां पुत्री) कुमारी बेन शारदा २७ वर्षनी वये स्वर्गवास पाम्यां. पू. बेनश्रीना तथा
वजुभाई–हिंमतभाईना ते भाणेजी थाय. छेल्लां लगभग चौद वर्षथी ते सोनगढमां ज रहेतां, पहेलेथी ज
तेमनी शरीर प्रकृति नबळी होवा छतां पू. गुरुदेवनां व्याख्यान वगेरेनो लाभ तेओ प्रेमपूर्वक लेतां हतां,
देवगुरुनी भक्तिना प्रसंगोमां पण उल्लासपूर्वक भाग लेतां हतां. आश्रममां पू. बेनश्री–बेनना सहवासमां
रहेवानुं तेमने बहु प्रिय हतुं अने घणोखरो वखत तेओ पू. बेनश्री–बेनने त्यां ज गाळतां.
छेल्ला त्रणेक दिवसथी तेमनी तबियत विशेष नरम हती. मागशर वद अमासे पू. गुरुदेव आश्रममां
दर्शन कराववा पधार्या हता, ने कह्युं के “आत्मा जाणनार छे... तेनुं लक्ष राखवुं.” स्वर्गवासना दिवसे लगभग
छेल्ली घडी सुधी शारदाबेन जागृत हतां. स्वर्गवास सांजे छ ने दश मिनिटे थयो त्यार पहेलांं वीस मिनिट
अगाउ तो पू. गुरुदेव पधारेला ने होंशपूर्वक तेओश्रीना दर्शन कर्यां तथा वातचीत पण करी.. पोणा छ वागे
गुरुदेव पधारतां ज प्रमोदथी कह्युं– ‘पधारो... पधारो... पधारो.’ पू. गुरुदेवे पण घणी कृपापूर्वक कह्युं: “जो
बेन! आत्मा तो ज्ञान छे. आ देह... श्वास... ने आकुळता त्रणेथी जुदो आत्मा ज्ञान... दर्शन... ने आनंद... ए
त्रण स्वरूप छे... एनुं लक्ष राखवुं.” गुरुदेवनी आ वात सांभळीने वातावरण
(अनुसंधान पाना नं. ७३ उपर)