Atmadharma magazine - Ank 148
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २०१२ : आत्मधर्म : ७३ :
प्रसन्नतामय थई गयुं... ने बेन शारदाए भावभर्या वदने कह्युं– ‘गुरुदेव! आपनी बहु कृपा छे... देह ने
आत्मा तो जुदा ज छे.’ पू. गुरुदेवे कह्युं: तमे तो घणुं सांभळ्‌युं छे एटले तेमांथी याद करीने विचारवुं. आ
शरीर तो अनित्य ज छे. त्यारे बेन शारदाए कह्युं: “हा जी! आ देह तो आज छे ने काल नथी.” छेवटे पू.
गुरुदेवे मांगळिक संभळाव्युं हतुं, अने त्यारबाद मात्र वीसेक मिनिटमां ज बेन शारदा स्वर्गवास पामी गई
हती. गुरुदेव पधार्या त्यारे पण तेने भींस तो चालु ज हती, छतां घणा प्रयत्नथी जागृति राखीने गुरुदेव तरफ
ज लक्ष रोकी राख्युं हतुं ने गुरुदेवे जे कह्युं ते भावपूर्वक झील्युं हतुं. ए वखतनी तेनी हिंमत जोईने बधाने
आश्चर्य थतुं. गुरुदेव पधारतां आ मृत्यु प्रसंग पण जाणे आनंदना प्रसंगमां फेरवाई गयो हतो. खरेखर,
संतपुरुषोनी शीतळ छाया जिज्ञासुजीवोने केवी शरणभूत छे–ते आ वखते प्रत्यक्ष देखातुं हतुं.
पू. बेनश्री–बेन पण सततपणे तेने जागृति आप्या करतां हतां... तेओ श्री वारंवार कहेतां के आत्मा
जाणनार छे तेनुं लक्ष राखजे... वेदना देहमां छे... आत्मामां नथी; देह ने आत्मा जुदा छे. पू. बेनश्री–बेननी
हूंफथी शारदाबेनने घणी हिंमत रहेती... ने बेनश्री–बेन पण अनेक उल्लासकारी प्रसंगोनुं तेमज सीमंधर
भगवाननुं स्मरण करावीने तेने उल्लास प्रेरतां अने साथे आत्मानुं लक्ष राखवानुं कहीने वारंवार जागृत
करतां... ने कहेतां के “शारदा! गुरुदेव तारा माटे ज दर्शन देवा पधार्या ने प्रेमपूर्वक तने आटलुं संभळाव्युं ते
तारा महाभाग्य छे... तारुं तो जीवन सफळ थई गयुं” नीचेनी चार लीटी पू. बेनश्री–बेन वैराग्य भरेली
चेष्टाथी वारंवार संभळावता:
आतमराम अविनाशी आव्यो एकलो...
ज्ञान अने दरशन छे तेनुं रूप जो...
बहिरभावो स्पर्श करे नहीं आत्मने...
खरेखरो ए ज्ञायकवीर गणाय जो...
–गंभीर वैराग्यपूर्वक ज्यारे ए लीटीओ गवाती त्यारे आखुं वातावरण पलटाई जतुं... चारे कोर जाणे
उपशांत वैराग्यरसनी छाया छवाई जती... बेन शारदा पण ते सांभळतां डोली ऊठती.
लगभग छ वागे छेल्लो हुमलो आव्यो ने पू. बेनश्री–बेन उग्रपणे प्रोत्साहन आपवा मांड्यां: जो
शारदा! ध्यान राखजे हो... होशियार रहेजे... आत्मानुं लक्ष राखजे... सीमंधर भगवाननुं शरण छे... गुरुदेवनुं
शरण छे........... शारदाबेन तो फाटी आंखे बेनश्री–बेन तरफ जोई ज रह्यां... ने ए ज स्थितिमां छ ने दश
मीनीटे देह छोडीने स्वर्गवासी थई गयां...
पू. गुरुदेवनी अद्भुत वाणीना प्रतापे जिज्ञासुओना जीवनमां केवो लाभ थाय छे, अने पू. बेनश्री–
बेननी छत्रछायाथी केवी हूंफ रहे छे ते आवा प्रसंगे देखाई आवे छे.
छेवटे, जीवनमां प्राप्त थयेल संतोनी कल्याणकारी छत्रछायाना प्रतापे शारदाबेने पोताना आत्मामां जे
संस्कारो पाड्या छे तेमां आगळ वधीने ते पोतानुं आत्महित साधे ने आवा जन्म मरणथी–छूटे ए ज भावना.