आत्मा तो जुदा ज छे.’ पू. गुरुदेवे कह्युं: तमे तो घणुं सांभळ्युं छे एटले तेमांथी याद करीने विचारवुं. आ
शरीर तो अनित्य ज छे. त्यारे बेन शारदाए कह्युं: “हा जी! आ देह तो आज छे ने काल नथी.” छेवटे पू.
गुरुदेवे मांगळिक संभळाव्युं हतुं, अने त्यारबाद मात्र वीसेक मिनिटमां ज बेन शारदा स्वर्गवास पामी गई
हती. गुरुदेव पधार्या त्यारे पण तेने भींस तो चालु ज हती, छतां घणा प्रयत्नथी जागृति राखीने गुरुदेव तरफ
ज लक्ष रोकी राख्युं हतुं ने गुरुदेवे जे कह्युं ते भावपूर्वक झील्युं हतुं. ए वखतनी तेनी हिंमत जोईने बधाने
आश्चर्य थतुं. गुरुदेव पधारतां आ मृत्यु प्रसंग पण जाणे आनंदना प्रसंगमां फेरवाई गयो हतो. खरेखर,
संतपुरुषोनी शीतळ छाया जिज्ञासुजीवोने केवी शरणभूत छे–ते आ वखते प्रत्यक्ष देखातुं हतुं.
हूंफथी शारदाबेनने घणी हिंमत रहेती... ने बेनश्री–बेन पण अनेक उल्लासकारी प्रसंगोनुं तेमज सीमंधर
भगवाननुं स्मरण करावीने तेने उल्लास प्रेरतां अने साथे आत्मानुं लक्ष राखवानुं कहीने वारंवार जागृत
करतां... ने कहेतां के “शारदा! गुरुदेव तारा माटे ज दर्शन देवा पधार्या ने प्रेमपूर्वक तने आटलुं संभळाव्युं ते
तारा महाभाग्य छे... तारुं तो जीवन सफळ थई गयुं” नीचेनी चार लीटी पू. बेनश्री–बेन वैराग्य भरेली
चेष्टाथी वारंवार संभळावता:
ज्ञान अने दरशन छे तेनुं रूप जो...
बहिरभावो स्पर्श करे नहीं आत्मने...
खरेखरो ए ज्ञायकवीर गणाय जो...
शरण छे........... शारदाबेन तो फाटी आंखे बेनश्री–बेन तरफ जोई ज रह्यां... ने ए ज स्थितिमां छ ने दश
मीनीटे देह छोडीने स्वर्गवासी थई गयां...