Atmadharma magazine - Ank 149
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
संसार ऊभो कर्यो छे; अने परथी पोताना शुद्ध ज्ञानानंद आत्मस्वभावनुं यथार्थ श्रवण–मनन करीने तेनी सम्यक्–
श्रद्धा–ज्ञान ने रमणता प्रगट करवी ते मोक्षनो उपाय छे. प्रथम सत्समागमे सत्यनुं श्रवण करी, तेने लक्षमां लईने
सत्यनो पक्ष करवो ते धर्मनी शरूआतनो उपाय छे. माटे आ जे सत्य कहेवाय छे तेनुं लक्ष करीने सत्यनो पक्ष करो ने
असत्यनो पक्ष छोडो.
नेमिनाथ भगवाने शुं कर्युं?
–जीवननुं खरुं ध्येय शुं?
आ गीरनारना सहेस्रावनमां भगवानश्री नेमिनाथ परमात्मा केवळज्ञान पाम्या. ते केवळज्ञान कयांथी
आव्युं? चैतन्यशक्तिमां जे सर्वज्ञता हती ते प्रगटी. भगवानने चैतन्यशक्तिनुं भान तो पहेलेथी हतुं, पछी ते
चैतन्यशक्तिमां एकाग्रता वडे रागनो नाश करीने भगवान केवळज्ञान पाम्या. तेम दरेक आत्मामां केवळज्ञानशक्ति
पडी छे, ते स्वभावशक्तिनुं ज्ञान करीने तेमां एकाग्र थवुं ते केवळज्ञान प्रगट करवानी रीत छे. माटे जिज्ञासुए
भगवान जेवा पोताना आत्मस्वभावनी ओळखाण करवी ते ज प्रथम करवानुं छे, ने ते ज धर्मनी शरूआतनी
अपूर्व क्रिया छे. आत्मस्वरूपनी साची समजण करीने अपूर्व सम्यक्त्व प्रगट करवुं ने मिथ्यात्व टाळवुं तथा त्यार
पछी आत्मस्वरूपमां लीनता वडे अस्थिरताने टाळीने केवळज्ञान प्रगट करवुं ते जीवननुं खरुं ध्येय छे; तेने बदले
जीवनमां जेणे साची श्रद्धा पण न करी, आत्मानी समजण पण न करी तेणे आ मनुष्यपणुं पामीने खरेखर कांई कर्युं
नथी.
‘सौराष्ट्रमां त्रण कल्याणक प्राप्त वैराग्यमूर्ति नेमिनाथ भगवाननो जय हो!’
सम्यक्त्वना महिमा सूचक
प्रश्नोत्तर
प्रश्नः– जगतमां कोण साचो पंडित छे?
उत्तरः– सिद्धि करनार एवा सम्यक्त्वने जेणे स्वप्नामां पण मलिन कर्युं नथी ते ज साचो पंडित छे.
(–मोक्षपाहुड ८९)
प्रश्नः– जिनवरदेवे गणधरादि शिष्योने जे धर्म उपदेश्यो ते धर्मनुं मूळ शुं छे?
उत्तरः– भगवाने उपदेशेला धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे. –
‘दंसणमूलो धम्मो’
(–दर्शनपाहुड २)
मुद्रकः– जमनादास माणेकचंद रवाणी, अनेकान्त मुद्रणालयः वल्लभविद्यानगर (गुजरात)
प्रकाशकः– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, वल्लभविद्यानगर (गुजरात)