श्रद्धा–ज्ञान ने रमणता प्रगट करवी ते मोक्षनो उपाय छे. प्रथम सत्समागमे सत्यनुं श्रवण करी, तेने लक्षमां लईने
सत्यनो पक्ष करवो ते धर्मनी शरूआतनो उपाय छे. माटे आ जे सत्य कहेवाय छे तेनुं लक्ष करीने सत्यनो पक्ष करो ने
असत्यनो पक्ष छोडो.
–जीवननुं खरुं ध्येय शुं?
चैतन्यशक्तिमां एकाग्रता वडे रागनो नाश करीने भगवान केवळज्ञान पाम्या. तेम दरेक आत्मामां केवळज्ञानशक्ति
पडी छे, ते स्वभावशक्तिनुं ज्ञान करीने तेमां एकाग्र थवुं ते केवळज्ञान प्रगट करवानी रीत छे. माटे जिज्ञासुए
भगवान जेवा पोताना आत्मस्वभावनी ओळखाण करवी ते ज प्रथम करवानुं छे, ने ते ज धर्मनी शरूआतनी
अपूर्व क्रिया छे. आत्मस्वरूपनी साची समजण करीने अपूर्व सम्यक्त्व प्रगट करवुं ने मिथ्यात्व टाळवुं तथा त्यार
पछी आत्मस्वरूपमां लीनता वडे अस्थिरताने टाळीने केवळज्ञान प्रगट करवुं ते जीवननुं खरुं ध्येय छे; तेने बदले
जीवनमां जेणे साची श्रद्धा पण न करी, आत्मानी समजण पण न करी तेणे आ मनुष्यपणुं पामीने खरेखर कांई कर्युं
नथी.
उत्तरः– सिद्धि करनार एवा सम्यक्त्वने जेणे स्वप्नामां पण मलिन कर्युं नथी ते ज साचो पंडित छे.
उत्तरः– भगवाने उपदेशेला धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे. –
प्रकाशकः– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, वल्लभविद्यानगर (गुजरात)