वर्ष तेरमुं ः सम्पादकः चैत्र
अंक छठ्ठो रामजी माणेकचंद दोशी २४८२
“भावनाथी भवन”
जेने जेनी रुचि होय ते तेनी वारंवार भावना भावे छे, अने भावना अनुसार
भवन थाय छे.
भावनाथी भवन थाय छे; जेवी भावना तेवुं भवन, एटले के शुद्ध
आत्मस्वभावनी वारंवार भावना करवाथी तेवुं भवन–परिणमन थई जाय छे.....माटे
ज्यां सुधी आत्मानी यथार्थ श्रद्धा, ज्ञान ने अनुभव न थाय त्यां सुधी सत्समागमे
वारंवार प्रीतिपूर्वक तेनुं श्रवण–मनन अने भावना कर्या ज करवी.–ए भावनाथी ज
भवनो नाश थाय छे.
– पू. गुरुदेव.
मिथ्यात्व–आदिक भाव रे! चिरकाळ भाव्या छे जीवे;
सम्यक्त्व–आदिक भावने भाव्या नथी पूर्वे जीवे.
– भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेव.
वार्षिक लवाजम (१प०) छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)