Atmadharma magazine - Ank 150
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म अंक १४९ वगेरेनी अशुद्धि
अंक–पानुं–कोलम–लाईनअशुद्ध शुद्ध
१४९–७९–१–३१भान ज होयभान ज न होय
१४९–७९–२–२९शुद्धभाव महाव्रतादि पाळे शुभभावथी महाव्रतादि पाळे
१४९–७९–२–३२कह्युं छे पूर्वे जे के कह्युं के पूर्वे जे
१४९–८०–२–१७गंध आवी पण नथीगंध पण आवी नथी
१४९–८०–२–२१आत्मानी मोक्षनी आत्मामां मोक्षनी
१४९–८०–२–२९ आत्माना स्वभावनो आत्माना
१४९–८३–२–२८
ध्यानथी ज ध्याननी ज
१४९–८प–१–१निजपरिणाम विषय निजपरिणाम विषम
१४९–८प–२–पत्यांनी जीवो त्यांथी जीवो
१४९–९१–१–३३प्रारब्धथी मळी जतो नथीप्रारब्धथी मळी जाय छे,
परंतु तेम धर्म कांई प्रयत्न विना
प्रारब्धथी मळी जतो नथी;
१४९–९१–२–९अनाबरू ते गुण नथीआबरू ते गुण नथी
१४प–७–१–१३शुभता प्रगटे छेशुद्धता प्रगटे छे
१४६–२२–१–२अनंतकाळथी पण अनंतकाळ पछी पण
१४६–२६–१–३०चार रूपी द्रव्योमां अद्रशचार अरूपी द्रव्योमां सद्रश
१४६–२९–१–३०ज्ञाननी मारा ज्ञानी ने मारा
१४६–२९–१–३१ज्ञानथी ने जुदी छेज्ञानथी जुदी छे
१४६–३२–२–३४भाववाथी भाववने भाववाथी भवनो
१४७–३प––१० भक्ति छे–भक्ति छे भक्त छे–भक्त छे
१४८–६०––८संतोने उपदेश छे संतोनो उपदेश छे
१४८–६४–२–४भ्रमणानो नाश थई जाय छेभ्रमणनो नाश थतो नथी
*
मोक्षनुं दातार
अहो! जेने धर्मनी भावना
होय....मोक्षनी भावना होय, ते जीवो आत्माना
स्वभावनुं निरीक्षण करो........आत्मामां
अंर्तअवलोकन करो.......ते ज मोक्षनुं दातार छे.
– पू. गुरुदेव.
भवना अंतना भणकारा
हे भाई! हवे आ भवभ्रमणथी आत्मानो
छूटकारो केम थाय तेनो उपाय सत्समागमे कर.
सत्समागमे चिदानंदस्वभावनुं अंतरना
उल्लासपूर्वक श्रवण करीने, तेनी प्रतीत करतां ज
तारा आत्मामां भवना अंतना भणकारा वागी
जशे.