Atmadharma magazine - Ank 150
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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‘हैडानां हार आवो....आतम–शणगार पधारो....’
* चैत्र सुद दसमे श्री मानस्तंभनुं स्वागत *
आज मारे रे आंगणीये श्री जिनवरजी पधार्या.....
श्री जिनवरजी पधार्या.....श्री जिनवरजी पधार्या.....आज
सीमंधरनाथ आवो.....तीर्थंकरदेव पधारो
(२)
जयनाद गगनमां गाजे.....हैडां सेवकना हरखे.....
हैडानां हार आवो, आतम–शणगार पधारो
(२)
पावन सेवकने करीने सेवक सामुं नीहाळो.....
कई विध वंदुं स्वामी! कई विध पूजुं स्वामी! (२)
त्रिलोकीनाथ पधार्या अम सेवकना आंगणीय.....
श्री मानस्तंभ सोहे सीमंधरनाथ बिराजे (२)
विभूति जगनी आवे श्री जिनवरनां चरणोमां.....
ध्यान धूरंधर स्वामी.....वीतराग विलासी स्वामी (२)
सुखमंदिर जिनवर देवा, हम रहीए तुज चरणोमां.....
त्रिलोकीनाथ चरणे मुक्तिनुं सुख नीहाळुं.....(२)
दिनरात जिनने ध्यावुं अंतरमां नाथ वसावुं.....
गुरु कहान जिनने नीरखे, हैडामां हरखी जाये (२)
तुज वारणां उतारे सुवर्णे मंगल थाये.....
गुरु कहानना प्रतापे, जिनराज भेटया आजे (२)
आ पंचमकाळ भूलाये, नितनित मंगल थाये.....
आज मारे रे आंगणीये.....श्री मानस्तंभजी पधार्या.....
आज मारे रे मानस्तंभे सीमंधरनाथ बिराज्या.....
* * *