Atmadharma magazine - Ank 150
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
सर्वज्ञनी आज्ञानुं पालन
सर्वज्ञ एटले जेमने परिपूर्ण ज्ञान खीली गयुं छे ते; एवा सर्वज्ञपरमात्मानी आज्ञा शुं छे? अने ते
आज्ञानुं पालन करनार जीव केवो होय? ते संबंधी महत्त्वनो न्याय तद्न संक्षेपमां जणावतां पू. गुरुदेवे चर्चामां
नीचे मुजब जणाव्युं हतुं–
×आत्मा ज्ञानस्वभाव छे;
×ज्ञाननो स्वभाव मात्र ज्ञातापणुं ज छे.
×आवा ज्ञानस्वभावनी प्रतीत करीने तेमांथी भगवाने सर्वज्ञपणुं प्रगट कर्युं.
×ते सर्वज्ञ भगवाने उपदेशमां पण ए ज आज्ञा फरमावी छे, एटले ज्ञानस्वभावनी प्रतीत करीने
तेना आश्रये ज्ञाताद्रष्टा रहेवानी ज भगवाननी आज्ञा छे.
×ज्ञानस्वभावनी प्रतीत करीने ज्ञाताद्रष्टापणे रहेवुं ते साधन;
×अने पूर्ण केवळज्ञान प्रगटे ते साध्य.
×आ रीते ज्ञानमां ज साधन अने साध्य समाय छे.
–आ सर्वज्ञ भगवानना उपदेशनो टूंको सार छे.
×सर्वज्ञ भगवानना आवा मार्गनी प्रतीत करनार जीव ज्ञातापणे रह्यो एटले कयांय फेरफार
करवानो अभिप्राय न रह्यो, ए रीते क्रमबद्धपर्यायनी प्रतीत तेमां आवी ज गई.
×ज्ञानस्वभावनो निर्णय करीने ज्ञाता थयो, पछी कई भूमिकामां केवो व्यवहार होय ने केवा निमित्तो
होय तेने पण ते ज्ञातापणे जाणे छे; अने तेने ज ते सर्वनुं यथार्थ ज्ञान थाय छे, अने ते ज
सर्वज्ञनी आज्ञानुं पालन करे छे. ज्ञाताद्रष्टापणे सर्वज्ञनी आज्ञानुं पालन करतां करतां ते पोते पण
सर्वज्ञ थई जशे.
×हुं ज्ञानस्वभाव ज छुं–एवो जेने निर्णय नथी तेने सर्वज्ञ भगवाननी आज्ञानी खबर नथी, तेथी
सर्वज्ञ भगवानना आगमना एक अक्षरनो पण साचो अर्थ तेने आवडशे नहीं, भगवाने कहेला
व्यवहारनी ने निमित्तनी खबर पडशे नहि.
–चर्चा उपरथी.
सुवर्णपुरी समाचार
*सोनगढना जिनमंदिरनुं काम चाली रह्युं छे. तेना बार शाख मुकवानुं मुहूर्त फागण सुद बीजे हतुं.
बार शाख मुकवानी विधि पू. बेनश्री बेनना सुहस्ते, तेमज शेठ श्री नानालालभाई–बेचरलालभाई–
मोहनलालभाई तथा मुरब्बी श्री रामजीभाई वगेरेना सुहस्ते थई हती. साथेसाथे सीमंधर भगवाननी प्रतिष्ठानो
१६मो वार्षिकोत्सव पण आ ज दिवसे हतो, ते निमित्ते जिनेन्द्रदेवनी रथयात्रा वगेरे थयेल हतुं.
*परम पूज्य गुरुदेवना प्रवचनमां सवारे श्री प्रवचनसारनो “चरणानुयोगसूचक चूलिका”
अधिकार चाले छे. अने बपोरे श्री अष्टप्राभृत वंचातुं हतुं ते फागण सुद तेरसे पूर्ण थयुं छे; फागण सुद चौदसथी
व्याख्यानमां श्री समयसारनुं वांचन शरू थयुं छे. समयसार उपर परम पूज्य गुरुदेवना आ अगीयारमी वखत
प्रवचनो चाली रह्या छे; वक्ता तेम ज श्रोता सौने तेनो रस दिनदिन वधतो ज जाय छे. ए समयसारनी कोई
अद्भुत विशिष्टता छे.
*श्री पंचास्तिकाय शास्त्रना गुजराती भाषांतरनुं छापकाम (संस्कृत टीका सहित) चाली रह्युं छे.
*
मुद्रकः– जमनादास माणेकचंद रवाणी, अनेकान्त मुद्रणालयः वल्लभविद्यानगर (गुजरात)
प्रकाशकः– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, वल्लभविद्यानगर (गुजरात)