नथी. भगवानना उपदेशमां सारभूत सम्यग्दर्शन छे ते जन्म–जरा–मरणनो नाश करावनारुं छे ने मुक्ति प्राप्त
करावनारुं छे. अहो, श्रमणो के श्रावको, सौने पहेलां तो दर्शनशुद्धिनो ज भगवाननो उपदेश छे, दर्शनशुद्धि विना खरुं
श्रावकपणुं के श्रमणपणुं होतुं नथी. सम्यग्दर्शन पछी ज चारित्रदशा होय छे.
चारित्र वगेरे बधुंय मिथ्या छे. माटे सम्यग्दर्शनने प्रधान जाणीने तेने ज अंगीकार करवानो उपदेश छे. सर्वज्ञनो
उपदेश सर्वज्ञता तरफ लई जवानो छे. वीतरागनो उपदेश वीतरागतानो ज पोषक छे. पहेलां ज्ञानानंदस्वभावनी
वीतरागी द्रष्टि करो, ते द्रष्टिपूर्वक ज यथार्थ ज्ञानचारित्र होय छे. सम्यग्दर्शन विना खरेखर सर्वज्ञनी पण साची प्रतीत
थाय नहि. सम्यग्दर्शन ते सर्व उपदेशनो मूळ सार छे. सम्यग्दर्शन थयुं त्यां मोक्षनो मार्ग हाथ आवी गयो.....
आत्मानी दशा पलटी गई...भगवाननो उपदेश एम कहे छे के अरे जीवो! तमारा आत्मामां पूर्ण परमात्मशक्ति भरी
छे. तेनी सन्मुख द्रष्टि करो. जेणे आवी द्रष्टि प्रगट करी तेणे ज भगवाननो उपदेश झील्यो छे आ सिवाय
शुभरागादिथी लाभ मानीने रोकाई जाय,–तो तेणे भगवाननो उपदेश सांभळ्यो ज नथी, केमके रागथी धर्म थाय–
एवो भगवाननो उपदेश छे ज नहीं. आत्माना शुद्धचिदानंदस्वभावने मुख्य करीने निश्चयनयथी तेने प्रतीतमां लईने
सम्यग्दर्शन करवुं–ते जैनधर्मनो प्रधान उपदेश छे, केमके धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे. अने सम्यग्दर्शननी शुद्धिथी ज
आत्मानी सिद्धि थाय छे. माटे सर्व उद्यमपूर्वक सौथी पहेलां दर्शनशुद्धि प्रगट करवानो भगवाननो प्रधान उपदेश छे.
अहीं उपरोक्त बोर्डिंग छेल्लां चार वर्षथी चाले छे. तेमां जैनधर्म पाळता कोईपण फीरकाना विद्यार्थीओ के
धोरणोमां अभ्यास करता होय तेओने दाखल करवामां आवे छे.
अहीं एस. एस. सी. (मेट्रिक) सुधीना अभ्यास माटे हाईस्कूल छे.
अहीं विद्यार्थीओने हाईस्कूलना अभ्यास उपरांत श्री जैनदर्शननो धार्मिक अभ्यास पण कराववामां आवे
व्याख्यान श्रवणनो पण अपूर्व लाभ मळे छे.
टीकीटो मोकली, विद्यार्थीए पाळवाना धाराधोरण तथा नियमो अने प्रवेशपत्रो ता. २०–४–प६ सुधीमां मंगावी लेवां
अने ते भरी ता. २०–प–प६ सुधीमां परत मोकलवां. त्यार पछी आवेलां प्रवेशपत्रो स्वीकारवामां आवशे नहि.