आत्मानी अस्ति, ने तेमां अजीवनी तथा अशुद्धतानी नास्ति–एवी जे यथार्थ प्रतीत करवी तेनुं नाम दर्शनविशुद्धि
छे, ते दर्शनविशुद्धि ज मुक्तिनुं कारण छे.
अजीवनी पर्याय बीजा अजीवमां, आ जीवनी पर्याय आ जीवमां, अन्य जीवोनी पर्याय अन्य जीवोमां; सर्वज्ञनी
प्रतीत करी त्यां सर्वज्ञनी पर्याय सर्वज्ञमां ने मारी पर्याय मारामां; कोई एकने कारणे बीजानी पर्याय नथी.–जुओ
आ तत्त्वार्थश्रद्धान! आमां वीतरागी अभिप्रायनुं अनंतुं जोर छे, ते श्रद्धानमां रागनुं कर्तृत्व रह्युं नथी, परनी
कर्ताबुद्धि रही नथी, स्वभाव सन्मुख थईने ज्ञायकपणे ज पोताने प्रतीतमां लीधो छे. आवी प्रतीतनुं एटलुं जोर छे
के तेने लीधे जीव रागादिरूप परिणमतो नथी; ज्ञायकसन्मुख द्रष्टिथी शुद्धता ज करतो जाय छे. आ रीते दर्शनशुद्धिथी
ज आत्मानी सिद्धि छे. सातमी नरकमां रहेलो पण जे जीव आवी सात तत्त्वोनी प्रतीत करीने दर्शनशुद्धि करे छे ते
जीव त्यां नरकमां पण शुद्ध छे; अने जेने सात तत्त्वोनी प्रतीत नथी, दर्शनशुद्धि नथी ते जीव सर्वज्ञ भगवाननां
समवसरणमां बेठो होय तो पण अशुद्धिमां ज पडयो छे. शुद्धआत्माना भान विना आत्मानी शुद्धि केवी?
समकितीने साते तत्त्वोनी ने शुद्धआत्मानी प्रतीतना जोरे आत्मानी शुद्धता थई छे. तेथी दर्शनशुद्धि जेने छे ते
आत्मा शुद्ध छे. “दर्शनशुद्धिथी ज आत्मसिद्धि छे.–एवो जैनशासननो मुद्रालेख कुंदकुंदाचार्यभगवाने कह्यो छे.
अशुद्ध छे, ने ज्ञानी शुद्धआत्मानी द्रष्टिमां सदा शुद्ध छे. जेने जेवी द्रष्टि छे तेवी पर्यायनी उत्पत्ति थाय छे.
शुद्धआत्मानी द्रष्टिमां शुद्धपर्यायनी उत्पत्ति ने ‘विकार ते हुं’ एवी अशुद्ध द्रष्टिमां अशुद्ध पर्यायनी ज उत्पत्ति थाय
छे. अहो! मारुं ज्ञान खुल्लुं ज छे, रागथी मारुं ज्ञान कदी बंधायुं नथी, आनंद साथे सदाय अभेद छे, आम,
ज्ञानतत्त्वनी प्रतीत करवी ते दर्शनशुद्धता छे, अने दर्शनशुद्धिवाळा ज निर्वाण पामे छे. जेने दर्शनशुद्धि नथी ते इष्ट
लाभ पामतो नथी. अनंता जीवो मोक्ष पाम्या ते बधाय सम्यग्दर्शननी शुद्धता वडे ज मोक्ष पाम्या छे. शुद्धता जेमांथी
काढवानी छे तेनी प्रतीत विना शुद्धता कयांथी आवशे? सोनानी खाणमां सोनुं भर्युं छे, ते खोदे तो सोनुं नीकळे,
पण लोढानी खाण खोदे तो सोनुं कयांथी आवशे? तेम जीवने मोक्ष एटले पूर्ण अतीन्द्रिय–आनंद प्रगट करवो छे.
ते आनंदनी खाण तो आ आत्मा छे, आत्माना स्वभावने खोजे–तेनी अंतर्दष्टि करीने एकाग्र थाय–तो अंदरथी
आनंदनो अनुभव प्रगटे. पण रागनी के देहनी खाण खोदे तो तेमां कांई आनंद नथी भर्यो. आनंदस्वभाव ज्यां
भर्यो छे एवा शुद्धचैतन्यतत्त्वनी द्रष्टि विना कदी आत्मानी शुद्धता थाय नहि. जेने मोक्ष जोईतो होय–आत्मानी पूर्ण
शुद्धता जोईती होय तेणे पहेलां तो शुद्धआत्माने द्रष्टिमां लईने दर्शनशुद्धि करवी जोईए. दर्शनशुद्धि ज मोक्षनुं मूळ
छे. सम्यग्दर्शन एटले शुद्धआत्मानी रुचि, जेने शुद्धआत्मानी रुचि छे ते ज पूर्ण शुद्धतारूप मोक्षने पामे छे; जेने
शुद्धआत्मानी रुचि नथी ते मुक्ति पामता नथी. आ रीते सम्यग्दर्शन ज मोक्षनी प्राप्तिनुं मुख्य कारण छे. माटे
आचार्य भगवाने मुद्रालेख बांध्यो छे के दर्शनशुद्धिवाळो ज शुद्ध छे, ने दर्शनशुद्धिथी ज आत्मसिद्धि पमाय छे माटे
सर्व प्रकारना उद्यमथी दर्शनशुद्धि करवानो उपदेश छे.
माटे छे, जेणे शुद्धआत्माने द्रष्टिमां लईने दर्शनशुद्धि प्रगट करी तेणे भगवानना उपदेशनो सार ग्रहण कर्यो.
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