प्रश्न:– जीवने तप वगेरे, पत्थरना बोजा समान क्यारे छे?
उत्तर:– शांतभाव, ज्ञान, चारित्र अने तप ए बधां जो सम्यग्दर्शन वगर होय तो पुरुषने पत्थरनी जेम
उत्तर:– जो ते ज्ञानादि भावोनी साथे सम्यग्दर्शन होय तो तेओ महामणि समान पूजनीक छे.
उत्तर:–
पण समकित तें नव लह्युं, ए जाणो निर्भ्रांत.
उत्तर:– हे जीव! जो तुं आत्माने नहि जाण अने बस, पुण्य–पुण्य ज कर्या करीश तोपण तुं सिद्धिसुख
भमे तो य संसारमां, शिवसुख कदी न थाय.
उत्तर:– निजदर्शन बस श्रेष्ठ छे, अन्य न किंचित् मान, हे योगी! शिवहेतुए निश्चयथी तुं जाण.
हे योगी! एक परम आत्मदर्शन ज मोक्षनुं कारण छे, ए सिवाय बीजुं कांई पण मोक्षनुं कारण नथी. –
उत्तर:– सम्यक्त्व–रत्न जगतमां सौथी उत्तम छे.
प्रश्न:– मोक्ष प्राप्त करवा माटे शुं करवुं?
उत्तर:– जिनवर ने शुद्धात्ममां, किंचित् भेद न जाण, मोक्षार्थे हे योगीजन! निश्चयथी ए मान.
–मोक्ष प्राप्त करवा माटे हे योगी! तारा शुद्धात्मामां अने जिनभगवानमां जरा पण फेर न समज, –आ
आनंद ब्रह्मणो रूपं निजदेहे व्यवस्थितम्।
ध्यानहीना न पश्यंति जास्यंधा इव भास्करम्।।