Atmadharma magazine - Ank 151
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 19 of 21

background image
: १३२ : आत्मधर्म वैशाख : २४८२
सम्यक्त्वना महिमासूचक प्रश्नोत्तर

प्रश्न:– जीवने तप वगेरे, पत्थरना बोजा समान क्यारे छे?
उत्तर:– शांतभाव, ज्ञान, चारित्र अने तप ए बधां जो सम्यग्दर्शन वगर होय तो पुरुषने पत्थरनी जेम
बोजा समान छे. (–आत्मानुशासन : १५)
प्रश्न:– उपर जे भावोने पत्थरना बोजा समान कह्या तेओ महामणि समान पूज्य क्यारे थाय?
उत्तर:– जो ते ज्ञानादि भावोनी साथे सम्यग्दर्शन होय तो तेओ महामणि समान पूजनीक छे.
(–आत्मानुशासन : १५)
प्रश्न:– अनंतकाळथी चोराशीलाख योनीमां रखडखा जीवे शुं प्राप्त नथी कर्युं?
उत्तर:–
लक्ष चोराशी योनिमां, भमियो काळ अनंत
पण समकित तें नव लह्युं, ए जाणो निर्भ्रांत.
–हे जीव! चोराशीलाख योनिमां अनादिकाळथी भमतां तुं कदी पण सम्यक्त्व पाम्यो नथी–एम चोक्कस
जाण! (योगसार: २५)
प्रश्न:– आत्मस्वरूपने जाण्या विना पुण्य करे तो शु थाय?
उत्तर:– हे जीव! जो तुं आत्माने नहि जाण अने बस, पुण्य–पुण्य ज कर्या करीश तोपण तुं सिद्धिसुख
पामी शकीश नहि, परंतु फरी फरीने संसारमां ज भटकीश. केम के–
निजरूप जे नथी जाणतो, करे पुण्य बस पुण्य!
भमे तो य संसारमां, शिवसुख कदी न थाय.
(–योगसार: १५)
प्रश्न:– मोक्षनुं कारण शुं छे?
उत्तर:– निजदर्शन बस श्रेष्ठ छे, अन्य न किंचित् मान, हे योगी! शिवहेतुए निश्चयथी तुं जाण.
हे योगी! एक परम आत्मदर्शन ज मोक्षनुं कारण छे, ए सिवाय बीजुं कांई पण मोक्षनुं कारण नथी. –
एम तुं निश्चयथी समज. (–योगसार: १६)
प्रश्न:– जगतमां उत्तम रत्न कयुं छे?
उत्तर:– सम्यक्त्व–रत्न जगतमां सौथी उत्तम छे.
प्रश्न:– मोक्ष प्राप्त करवा माटे शुं करवुं?
उत्तर:– जिनवर ने शुद्धात्ममां, किंचित् भेद न जाण, मोक्षार्थे हे योगीजन! निश्चयथी ए मान.
–मोक्ष प्राप्त करवा माटे हे योगी! तारा शुद्धात्मामां अने जिनभगवानमां जरा पण फेर न समज, –आ
प्रमाणे निश्चयथी तुं मान. (–योगसार: २०)

आनंद ब्रह्मणो रूपं निजदेहे व्यवस्थितम्।
ध्यानहीना न पश्यंति जास्यंधा इव भास्करम्।।
स्त्र
अहो! ज्ञानस्वभावी आत्मा पोते आनंदस्वरूप छे,
अने ते निजदेहे व्यवस्थित छे, तोपण,
– जेम जन्मांध प्राणीओ सूर्यने देखी शकता नथी
तेम ध्यानहीन जीवो तेने देखी शकता नथी.