राग के दवा ते कांई दुःख मटवानो उपाय नथी. मारी सहनशीलतानी नबळाईथी राग थाय छे, ते राग पण
मारा चिदानंदस्वरूपमां नथी, चिदानंदस्वरूपना आश्रये राग टाळवो ते दुःख टाळवानो उपाय छे–आ रीते
यथार्थ उपायने ज्ञानी जाणे छे, एटले राग तरफ तेना अभिप्रायनुं जोर जतुं नथी, तेथी तेनो राग अत्यंत मंद
छे; अज्ञानी तो बधुं ऊंधुंं माने छे–रोगने कारणे राग माने छे, ने रागवडे दवा वगेरेनो संयोग मेळववो तेने ते
दुःख टाळवानो उपाय माने छे, एटले तेनुं जोर एकला राग तरफ ज जाय छे, तेथी तेनो राग अनंता जोरवाळो
छे. आ रीते राग पाछळ बंनेना अभिप्रायनी दिशामां मोटो फेर छे.
नथी, तेथी तेने संयोगना आश्रये राग–द्वेष ज थया करे छे, वीतरागी शांतिनो अनुभव थतो नथी. ज्ञानी
संयोगोथी पोताने सुख–दुःख मानता नथी, सुख पोताना स्वभावमां ज छे एम तेने अनुभव छे अने बर्हिमुख
वलण जाय तेटलुं दुःख छे–एम ते जाणे छे; एटले दुःख टाळवा माटे ते पर तरफ नथी जोता पण पोताना
स्वभावना आनंदना अनुभव तरफ वळे छे. अहीं आत्मानी शक्तिओ बतावीने स्वद्रव्य तरफ वळवानुं
आचार्यदेव बतावे छे.
नथी, ऊंधा अभिप्राय वडे पोते पोतानी सत्तानो ज घात करे छे, –तेनुं नाम आत्मघात छे, ने ते आत्मघातने
महापाप कह्युं छे. मारा उत्पाद–व्यय–धु्रव मारी सत्तामां ज छे, ने परना उत्पाद–व्यय–ध्रुव परनी सत्तामां ज छे,–
बंनेनी सत्ता भिन्न भिन्न छे, तेथी एकना उत्पाद–व्यय–धु्रवमां बीजानो कांई हाथ नथी. –आम जाणीने पोते
पोतानी शुद्ध चैतन्यसत्ताने श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रमां अंगीकार करवी ने परसत्ताने पोताथी भिन्न जेम छे तेम
जाणवी–आवुं भेदज्ञान ते आत्माने जीवतो राखे छे–आत्माने प्रसिद्ध करे छे, तेमां आत्मा जेवो छे तेवा स्वभावे
प्रसिद्ध थईने मुक्ति थाय छे.
छतां, पर वस्तुना कार्यो माराथी थाय एम जे माने छे ते परवस्तुनी स्वतंत्र सत्ताना अधिकार उपर तराप
मारे छे, परने पोताने आधीन मानीने तेनी स्वाधीनता हणवा मांगे छे; परंतु पर चीज तो कांई तेने आधीन
थईने परिणमती नथी तेथी ते अज्ञानी परना आश्रये परिणमतो थको आकुळ–व्याकुळ थईने पोते पोतानी
स्वाधीनताने हणे छे. जेम एक राजानी सत्ता उपर बीजो राजा अधिकार जमाववा जाय तो त्यां लडाई थाय छे,
तेम चैतन्य अने जड बंने पदार्थो पोतपोतानी स्वतंत्र सत्ताना राजा छे, छतां आत्मा परने पोतानुं मानीने
तेनी सत्तामां घालमेल करवा जाय तो त्यां विसंवाद ऊभो थाय छे एटले के आत्मानी पर्यायमां शुद्धता हणाईने
अशुद्धता थाय छे–दुःख थाय छे–संसार थाय छे. परथी अत्यंत विभक्त अने पोताना ज्ञानादि अनंतगुणोथी
एकत्व एवी पोतानी चैतन्यसत्ताने जाणीने–श्रद्धा करीने तेमां स्थिर रहेतां शुद्धता थाय छे–सुख थाय छे–मुक्ति
थाय छे, ने स्वभावआश्रित स्वतंत्रताथी आत्मा शोभे छे.