Atmadharma magazine - Ank 151
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख : २४८२ आत्मधर्म : ११७ :
पू. गुरुदेवना श्रीमुखथी खरेला
६७
पुष्पोनी मंगळमाळा
प्रभुताना पंथे पडेला संतो आत्मामां प्रभुता स्थापे छे
१ अहो सिद्धभगवंतो! साधकपणाना महोत्सवमां मारा हृदये पधारो.
२ हे भगवंतो! मारा ज्ञानमांथी रागादिने काढी नांखीने हुं आपने स्थापुं छुं.
३ जेणे पोताना आत्मामां सिद्धने स्थाप्या तेनुं परिणमन सिद्धदशा तरफ वळ्‌युं.
४ समयसारनी शरूआतथी पदे–पदे आत्मामां सिद्धोनी स्थापना थती जाय छे ने विकार टळतो जाय छे.
५ ‘अमे प्रभुताना पंथे पडेला संतो, तारी (–श्रोतानी) पर्यायमां पण प्रभुता स्थापीए छीए.’
६ आत्मामां सिद्धभगवान जेवी ताकात छे ते देखीने तेनामां सिद्धपणुं स्थापीए छीए.
७ जेणे आत्माना उल्लासथी सिद्धपणानी हा पाडी ते पण सिद्धोनी जातमां भळी जशे.
८ हे भव्य! आवा आत्मानुं लक्ष बांध तो सहेजे सम्यग्दर्शन थया विना रहेशे नहि.
९ श्रोता केवा छे? –के पोताना स्वभावनी वात अपूर्व उल्लासपूर्वक सांभळे छे.
१० जेवा भावे वक्ता कहे छे तेवा ज भावे श्रोता सांभळे छे, ए रीते वक्ता–श्रोतानी संधि छे.
११ श्रोताने एक आत्मार्थ साधवानुं ज काम छे, बीजो कोई रोग तेना मनमां नथी.
१२ वळी ते उल्लासित वीर्यवान छे, –हा पाडीने होंसथी सांभळे छे.
१३ सिद्धने पहेलांं नहोतो ओळखतो ने हवे ओळख्या, तेथी ते तरफनो उल्लास ऊछळे छे.
१४ सर्वज्ञने पहेलांं नहोता जाण्या, ने हवे जाण्या, तेथी वीर्यनो वेग ज्ञानस्वभाव तरफ वळी गयो छे.
१५ सिद्धोनी संख्या सदाय वृद्धिगत ज छे, जेणे सिद्धोने स्वीकार्या तेनी पर्याय पण सदा वृद्धिगत ज छे.
१६ हे जीव! आ वातनी हा पाड! –हा ज पाडजे, ना पाडीश नहीं.
१७ आत्माना सिद्धपणानी वात सांभळतां ज श्रोता स्वसन्मुख लक्ष फेरववा मांगे छे.
१८ ‘हुं सिद्ध, तुं पण सिद्ध’ –एनो हकार आवतां ज लक्ष पलटी जाय छे.
१९ अमे स्वसन्मुख लक्ष फेरवेला, तने स्वसन्मुख लक्ष फेरवावीए छीए.
२० सिद्ध भगवानरूपी दर्पणमां जोतां तेमां पोताना शुद्धआत्मानुं ज प्रतिबिंब देखाय छे.