Atmadharma magazine - Ank 151
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: ११८ : आत्मधर्म वैशाख : २४८२
२१ सिद्धनुं बहुमान करनारने संसारनुं के संसारना कारणनुं बहुमान छूटी गयुं छे.
२२ सिद्धनुं बहुमान करनार शुद्धआत्माने ज आदरे छे–ते तरफ ज नमे छे.
२३ सिद्धनुं बहुमान कर्युं तेनुं वलण विभावथी छूटीने स्वभाव तरफ वळ्‌युं.
२४ सिद्धदशाने साधवा नीकळेला संतो पोताना मोक्षना मांडवे सिद्धभगवानने ऊतारे छे.
२५ आत्मामां सिद्धभगवानने स्थाप्या, हवे अमारी सिद्धदशाने रोकवा कोई समर्थ नथी.
२६ आत्मामां जेणे सिद्धभगवाननी स्थापना करी तेने सिद्धना संदेशा आवी गया.
२७ आत्मामां जेणे सिद्धभगवाननी स्थापना करी तेने भवनी शंका टळी गई.
२८ आत्मामां जेणे सिद्धभगवाननी स्थापना करी तेने अल्पकाळमां मोक्षनी निःसंदेहता थई.
२९ ‘बहारना भावो अनंतकाळ कर्या हवे अमारुं परिणमन अंदर ढळ्‌युं छे.’
३० ‘अप्रतिहतभावे अंर्तस्वरूपमां ढळ्‌या ते ढळ्‌या, हवे सिद्धपद लीधे ज छूटको.’
३१ जुओ, आ मोक्षना महोत्सव ऊजवाय छे; साधकना आंगणे मोक्षना मांडवा नंखाय छे.
३२ मोक्षलक्ष्मीने वरवा जतां साधक, पोताना हृदयमां सिद्धभगवानने साथे राखे छे.
३३ जुओ, आ सम्यग्दर्शन! अहो! सम्यग्दर्शन तो जगतमां अपूर्व अचिंत्य महिमावंत चीज छे.
३४ सम्यग्दर्शन थतां ज आखुं परिणमन फरी जाय छे, आत्मानी दशा ज बदली जाय छे.
३५ सम्यग्दशनने, सिद्धसमान पोताना शुद्धआत्मा सिवाय बीजा कोईनुं अवलंबन छे ज नहीं.
३६ आत्मा समजवा माटे जेने खरेखरी तालावेली जागे तेने अंतरमां मार्ग मळे ज.
३७ ‘सिद्धसमान सदा पद मेरो’ एवो विश्वास आव्या विना साधकदशा शरू थाय नहि.
३८ समकिती जीवे सिद्धभगवानना आनंदनो नमुनो पोताना आत्मामां चाखी लीधो छे.
३९ सिद्धभगवंतोने वंदन करनार जीव विभावथी विमुख थईने स्वभावनी सन्मुख जाय छे.
४० ‘एकवार वंदे जो कोई, तेने चतुर्गति भ्रमण न होई’ –कोने वंदे? के सिद्धभगवानने!
४१ पर्याय अंतर्मुख थईने शुद्धस्वभाव साथे जेटली एकता थई तेटला सिद्धने भावनमस्कार छे.
४२ शुद्धात्माना लक्षे सिद्धभगवानना बहुमाननो विकल्प ते द्रव्यनमस्कार छे.
४३ सिद्धने नमस्कार करनार जीव साधक तो छे ने अल्पकाळे सिद्ध थई जशे.
४४ साधकनुं अंतर बेधडक पडकार मारतुं साक्षी आपे छे के अमे हवे प्रभुना मार्गमां भळ्‌या छीए.
४५ साधकना हृदय अंतरमां ऊंडा छे, ते बहारथी कल्पी शकाय एवा नथी.
४६ भवभ्रमणथी थाकेला जीवोने श्रीगुरु कहे छे के देखो रे देखो! अंतरमां चैतन्यनिधानने देखो.
४७ हे जीव! तने चैतन्यना एवा निधान बतावुं के तारा आनंदने माटे बीजी कोई चीजनी जरूर न पडे.
४८ तारा चैतन्यनो महिमा देखतां ज तने आनंद थशे ने परनो महिमा छूटी जशे.
४९ भवना दुःखथी जे खरेखर डरतो होय ते तेना वेदनथी पाछो वळीने चैतन्यना आनंदनुं वेदन करे.
५० अंर्तद्रष्टिथी चैतन्यनिधानने देखतां ज जीव सम्यग्द्रष्टि थईने मोक्षमार्गे विचरवा मांडे छे.
५१ बाह्यद्रष्टिथी अंध थयेला अज्ञानी जीवो पोताना चैतन्यनिधानने देखता नथी.
५२ अंतर्द्रष्टिना अंजन आंजीने श्रीगुरु तेने तेना निधान बतावे छे.
५३ हे जीव! अंतर्द्रष्टिथी जो तो सिद्धभगवान जेवा निधान तने तारामां देखाशे.
५४ धर्मी जीव पोताना आत्मवैभवने जाणे छे के अहो! सर्वज्ञतानो वैभव मारामां भर्यो छे.