वैशाख : २४८२ आत्मधर्म : १२१ :
श्री गुरुजी उपर प्यार छे ... साचो तेनो आधार छे, कुंद–सीमंधर वारस छे ... रत्नचिंतामणी पारस छे,
ते नाविक तारणहार छे ... ए प्रभावशाळी वाणीयो. अंतर जेनुं आरस छे ... ए प्रभावशाळी संत छे.
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समयसारने छणनारो ... सर्व दोषने हणनारो, अंतरमां ओळखाण छे ... सर्व शास्त्रनो जाण छे,
मुक्तिने ते वरनारो ... ए प्रभावशाळी संत छे. वाणी अमीरस खाण छे ... ए प्रभावशाळी वाणीयो.
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अध्यात्मिक ए योगी छे ... आतमरसनो भोगी छे, अंतरमां उजमाळ छे ... व्याख्यान अमृतथाळ छे,
शुद्धस्वरूप संयोगी छे ... ए प्रभावशाळी संत छे. ते हृदयनो विशाळ छे ... ए प्रभावशाळी संत छे.
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पूरव भवमां पामेलो ... ते पण साथे लावेलो, आत्ममस्तीमां मस्त रहे ... सघळानुं ते हित चहे,
तत्त्वज्ञानमां रसघेलो ... ए प्रभावशाळी वाणीयो. कर्मशत्रुने नित्य दहे ... ए प्रभावशाळी वाणीयो.
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अंतर – आतम ओपतो. सर्वांगे ते शोभतो,
मुक्ति – मंडप रोपतो. ए प्रभावशाळी संत छे.
मिथ्यात्वनो विरोधक छे ... सत्य तणो ए स्थापक छे, अंर्तशोध करावे छे ... भक्तजनोने भावे छे,
परम श्रुतनो बोधक छे ... ए प्रभावशाळी वाणीयो. आतमज्ञाने सोहे छे ... ए प्रभावशाळी वाणीयो.
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अपूर्व शांति वेदक छे ... तमाम ग्रंथी भेदक छे, अजब गजबनी व्यक्ति छे ... अनोखी एनी शक्ति छे,
चतुर ने वळी चेतक छे ... ए प्रभावशाळी संत छे. निष्काम प्रभुनी भक्ति छे ... ए प्रभावशाळी संत छे.
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महा प्रतापी पुरुष छे ... भेदज्ञाननो स्फूरक छे, भाविकने संभाळे छे ... आतम लक्षे वाळे छे,
जाणे ऊगतो सूरज छे ... ए प्रभावशाळी वाणीयो. संशय सौना टाळे छे ... ए प्रभावशाळी वाणीयो.
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अजब एनी स्मृति छे ... गजब तेनी स्फूर्ति छे, आत्मज्ञाननो रसियो छे ... अम अंतरमां वसीयो छे,
केवळ करुणामूर्ति छे ... ए प्रभावशाळी संत छे. संसारथी दूर खसीयो छे ... ए प्रभावशाळी संत छे.
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एने आतमज्योति जागी छे...प्रभुमय लगनी लागी छे, सत्य स्वरूपमां रही रह्यो ... आत्म ओळखवा कही रह्यो,
भ्रमणा सौनी भांगी छे ... ए प्रभावशाळी वाणीयो. समये समये बोधी रह्यो ... ए प्रभावशाळी संत छे.
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श्रीमंत–धीमंत आवे छे ... चरणोमां शीर झूकावे छे, कर्म शत्रुने हणनारो ... साचो अनुभव करनारो,
मानीनां मान मुकावे छे... ए प्रभावशाळी संत छे. बिरूद धर्युं तारणहारो... ए प्रभावशाळी वाणीयो.
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