: १२२ : आत्मधर्म वैशाख : २४८२
सुंवाळी एनी काया छे ... शीतळ जेनी छाया छे, सुवर्णपुरी मोझार छे ... पुण्यशाळी पारावार छे,
ते उजमबाना जाया छे ... ए प्रभावशाळी संत छे. श्रद्धाथी बेडो पार छे ... ए प्रभावशाळी संत छे.
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रोकायो नहीं मायामां ... जेने मोह नथी आ कायामां, करुणा अपरंपार छे ... अनंत गुण भंडार छे,
रहेवुं एनी छायामां ... ए प्रभावशाळी वाणीयो. तेने वंदन लाखो वार छे ... ए प्रभावशाळी वाणीयो.
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एने नहि ओळखे ते पस्ताशे...भव रखडी खत्ता खाशे, सद्गुरु नाविक तुं साचो ... उतारु प्रभु! हुं तारो,
जाणनार फावी जशे ... ए प्रभावशाळी संत छे. मनमंदिरमां कर वासो ... ए प्रभावशाळी संत छे.
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तेने कदी ना वीसरीये ... आज्ञा एनी शीर धरीए, गुरुदेवने पाये लागुं छुं ... अविनयनी माफी मांगुं छुं,
भवसागर सहेजे तरीये ... ए प्रभावशाळी वाणीयो. सेवा भक्ति याचुं छुं ... ए प्रभावशाळी संत छे.
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विनवे प्रभुने सर्व समाज . राखजो वहाला सौनी लाज,
अमर तपो तमे हे गुरुराज! ए प्रभावशाळी आतमा.
[भावभीनी ग्राम्यभाषामां रचाएली आ स्तुति, उमराळाना भाईश्री रतिलाल नागरदासे
रचीने गाई हती; त्यारबाद फरीने फा. वद ११ ना रोज व्याखान बाद पू. बेनश्रीबेने विशेष
भक्तिपूर्वक आ स्तुति गवडावी हती, गुरुदेवना जन्मोत्सव–प्रसंगे ते अहीं प्रसिद्ध करवामां आवी छे.]
सम्यक्त्वना महिमासूचक प्रश्नोत्तर
प्रश्न:– जीवने अहितकारी कोण छे?
उत्तर:– त्रणकाळ त्रणलोकमां जीवने मिथ्यात्वसमान बीजुं कोई अहितकारी नथी. (–
रत्नकरंडश्रावकाचार: ३४)
प्रश्न:– जीवे शेनी भावना पूर्वे नथी भावी?
उत्तर:– जीवे पूर्वे मिथ्यात्व–आदिक भावोनी ज भावना भावी छे, पण सम्यक्त्व–आदिक भावोने पूर्वे
कदी भाव्या नथी. –––
मिथ्यात्वआदिक भावने चिरकाळ भाव्या छे जीवे,
सम्यक्त्वआदिक भाव रे! भाव्या नथी पूर्वे जीवे.
–नियमसार
प्रश्न:– ज्ञान वगेरे सर्वे गुणोनी शोभा शेनाथी छे?
उत्तर:– जेवी रीते नगरनी शोभा दरवाजाथी छे, मुखनी शोभा चक्षुथी छे अने वृक्षनी स्थिरता मूळथी
छे, तेवी रीते ज्ञान, चारित्र, तप अने वीर्यनी शोभा सम्यग्दर्शनथी छे. (–भगवती आराधना: ७४०)