समवसरणमां सर्वज्ञदेवे कहेलो.
ने
कुंदकुंदाचार्यदेवे झीलेलो.
वैशाख : २४८२ आत्मधर्म : १२३ :
सर्वज्ञ थवानो उपाय
समवसरण–प्रतिष्ठाना वार्षिक महोत्सव प्रसंगे श्री प्रवचनसार
गा. ४१ उपर पू. गुरुदेवनुं प्रवचन: वीर सं. २४८१ वैशाख वद ६
(१) सीमंधरप्रभुनुं समवसरण
आजे अहीं समवसरणनी स्थापनानो दिवस छे. आ तरफ (–पूर्व दिशा तरफ) महा विदेहक्षेत्रमां
श्री सीमंधर परमात्मा अत्यारे साक्षात् तीर्थंकरपणे बिराजे छे; त्यां समवसरणनी दैवी रचना छे ने
ईन्द्रो–चक्रवर्ती वगेरे भगवाननी सेवा करवा आवे छे. श्री कुंदकुंदाचार्यदेव त्यां दर्शन करवा पधार्या हता.
ते सीमंधर भगवानना समवसरणनी अहीं स्थापना थई तेनो आजे मंगल दिवस छे.
(२) कुंदकुंदाचार्यदेव सीमंधर – प्रभुना समवसरणमां
आ भरतक्षेत्रमां कुंदकुंदाचार्यदेव थया, तेओ महा अध्यात्मनी मूर्ति हता ने आत्माना आनंदमां
झूलता हता; तेमना वखतमां आ भरतक्षेत्रमां साक्षात् तीर्थंकर–भगवाननो विरह हतो. एकवार
आचार्यदेवने भगवाननो विरह खटक्यो ने ध्यानमां सीमंधरभगवानना समवसरणनुं चिंतवन कर्युं.
तेमने जमीनथी चार आंगळ ऊंचे चालवानी लब्धि हती. तेमनी महान पात्रताना योगे अने शासनना
महा भाग्ये तेमने महाविदेहमां साक्षात् सीमंधर परमात्मा पासे आववानो योग बन्यो. कुंदकुंदाचार्यदेवे
आठ दिवस सुधी भगवाननो दिव्यध्वनि सांभळ्यो तथा श्रुत केवळीओनो परिचय कर्यो ने पछी
भरतक्षेत्रे आवीने आ प्रवचनसार–समयसार वगेरे अलौकिक शास्त्रोनी रचना करी. समवसरणमां
सीमंधरभगवाने शुं कह्युं ते वात आचार्यदेव आ प्रवचनसारमां कहे छे. अहो! कुंदकुंदाचार्यदेवे आ
पंचमकाळमां तीर्थंकर जेवुं काम कर्युं छे.
(३) ज्ञान खीलवानो प्रयोग
आत्मा ज्ञानस्वभावी वस्तु छे, ज्ञान तेनो परम स्वभाव छे. ते ज्ञाननो अतीन्द्रियस्वभाव छे.
बहारना कोईपण साधननो प्रयोग करतां ज्ञान खीले एवो तेनो स्वभाव नथी, पण अंतरना
ज्ञानस्वभावमां एकाग्रताना प्रयोगथी ज ते ज्ञान खीले छे. माटे हे जीव! तुं तारा ज्ञानस्वभावनी
सन्मुख थईने तेनो निर्णय कर तो मोक्षमार्ग थाय.
(४) अतीन्द्रियज्ञानमां आनंद छे
आत्मानो ज्ञानस्वभाव ईन्द्रियोथी पार छे,