Atmadharma magazine - Ank 151
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: १२४ : आत्मधर्म वैशाख : २४८२
आ ईन्द्रियो तेनाथी जुदी छे. ज्ञानने अने ईन्द्रियोने एकता नथी. पोताना स्वभावने अवलंबीने
अतीन्द्रियपणे वर्ते ते ज ज्ञान आत्मानो स्वभाव छे; ने ते आनंदना अनुभव सहित छे. ईन्द्रियोने
अवलंबीने वर्ते ते ज्ञान तो पराधीन अने आकुळतावाळुं होवाथी हेय छे. चिदानंद स्वभाव तरफ वळीने
साधकनुं ज्ञान अंतरमां अभेद थयुं ते ज मुख्य छे, ने तेमां ईन्द्रियोनुं के रागनुं अवलंबन नथी, पण
आनंदनो ज अनुभव छे. वच्चे अधूरा ज्ञानमां ईन्द्रियोनुं अवलंबन तथा राग रह्या ते तो हेय छे, ते
कांई आदरणीय नथी. आ रीते स्वभावमां ज्ञाननी एकता थाय ने ईन्द्रियोनुं अवलंबन तूटे ते ज
उपादेय छे, तेमां आनंदनो अनुभव छे.
(५) सर्वज्ञनो निर्णय त्यां भ्रांतिनो अभाव
आत्मानो ज्ञानस्वभाव छे, ने ते स्वभावनुं पूर्ण सामर्थ्य खीली जतां सर्वज्ञता प्रगटे छे. आ
जगतमां, आत्माना ज्ञानस्वभावना अवलंबने ज्ञाननी दिव्यशक्ति प्रगट करीने सर्वज्ञ थयेला परमात्मा
आ छे, –आम जेणे पोताना ज्ञानमां सर्वज्ञनो निर्णय करीने तेनुं बहुमान कर्युं तेने ज्ञाननुं ने रागनुं
भेदज्ञान थया विना रहे नहीं, ने तेने भ्रांतिनी उत्पत्ति थाय ज नहीं. आ रीते सर्वज्ञनो निर्णय करतां
भ्रांतिनो अभाव थईने सम्यग्दर्शन थाय छे.
(६) सर्वज्ञनो निर्णय अतीन्द्रिय – ज्ञान वडे थाय छे.
वर्तमानमां पोताने अल्पज्ञान होवा छतां, ते ज्ञानमां सर्वज्ञतानो निर्णय कर्यो ते कोना जोरे कर्यो?
ते निर्णय ईन्द्रियना के रागना जोरे नथी कर्यो, पण सर्वज्ञनो निर्णय करवा जतां पोताना ज्ञानस्वभावमां
ऊतरीने ज्ञानना परिपूर्ण सामर्थ्यनो निर्णय कर्यो छे. आ रीते ज्ञानना परिपूर्ण सामर्थ्यनो निर्णय पण
अतीन्द्रियज्ञान वडे ज थाय छे. आ रीते स्वभावनी सन्मुखता वडे ज्ञानस्वभावनो निर्णय करतां
सम्यग्दर्शन थाय छे ने मिथ्यात्वनी उत्पत्ति थती नथी; एटले सर्वज्ञनो आ रीते निर्णय करनार जीव मोक्ष
मार्गे चडी जाय छे, –सर्वज्ञतानो साधक थई जाय छे.
(७) ज्ञानस्वभावना निर्णय विना सर्वज्ञना मार्गनी शरूआत थाय नहि.
ज्ञानस्वभावी आत्मामांथी ज्ञाननुं पूरेपूरुं सर्वज्ञपणुं प्रगट करनारा अनंता सिद्ध भगवंतो आ
जगतमां छे, लाखो केवळी–अरिहंत भगवंतो मनुष्यलोकमां बिराजे छे, –आम ज्यां सर्वज्ञनी सत्तानो
निर्णय करवा जाय त्यां पोताना ज्ञान स्वभावनी सन्मुखता थया विना रहेती नथी. ज्ञानस्वभावमां ऊंडो
ऊतरीने ज सर्वज्ञनो निर्णय थाय छे. सर्वज्ञता पोताने प्रगटया पहेलां पण स्वभावमां सर्वज्ञ थवानुं
सामर्थ्य भरेलुं छे तेनो निर्णय आत्माना आधारे थई शके छे; अने आवो निःशंक निर्णय थया वगर
सर्वज्ञ थवानो पुरुषार्थ ऊपडी शके ज नहि. स्वभाव सामर्थ्यना निर्णयथी ज वास्तविक मार्गनी शरूआत
थाय छे.
(८) हे जीव! तारा आत्मामां एकवार सर्वज्ञतानो रंग चडाव
जेणे सर्वज्ञनो निर्णय कर्यो, अने मारा आत्मामां पण सर्वज्ञ थवानी ताकात छे–एम