वर्ष तेरमुं : सम्पादक: जेठ
अंक आठमो रामजी माणेकचंद दोशी २४८२
प्रयोजनी सिद्धि
आत्माने शांतिनुं प्रयोजन छे, ते केम सिद्ध थाय तेनी आ
वात छे.
जीव ज्यां–ज्यां जेमां जेमां सुख माने छे तेमां आत्मा माने
छे. संयोगमां जे सुख माने छे ते संयोगवाळो आत्माने माने छे;
रागादिमां जे सुख माने छे ते रागादिने ज आत्मा माने छे; गुण–
गुणी भेद वगेरेना विकल्पमां जे सुख माने छे ते विकल्पने ज
आत्मा माने छे; ए रीते ज्यां ज्यां सुख माने छे त्यां त्यां आत्मा
माने छे, ने त्यांथी ते खसतो नथी.
हवे संयोगमां–रागमां–विकल्पमां सुख माने छे पण तेमां
तेने सुख थतुं तो नथी; माटे आचार्यदेव कहे छे के ते बधाय
अभूतार्थ छे; अंतर्मुख चैतन्यस्वभावमां लक्ष जाय त्यारे ज सुख
थाय छे, माटे ते शुद्धचैतन्यस्वभाव एक ज भूतार्थ छे, तेनी
द्रष्टिथी ज सुख थाय छे. माटे शुद्धनयना अवलंबन वडे
शुद्धआत्मानो आश्रय करवानो उपदेश छे. –अने एम करवाथी ज
जीवने सम्यग्दर्शन आदि अपूर्व शांतिनुं वेदन थाय छे.
पू. गुरुदेव.
वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)