छुं... हुं भगवान छुं” एवा रटणपूर्वक देह छोडेल छे. स्वर्गवास अगाउ बे कलाक पहेलांं मुमुक्षुओ तेनी पासे धून
बोलतां, तेमज मांगळिक संभळावता, अने कहेता “जो भाई जगदीश! तारो आत्मा आ बधाथी जुदो छे... आ
शरीर–माता–पिता के सगावहालां कोई तने शरणभूत नथी... भगवान आत्मा एक ज शरणभूत छे...
भगवाननुं शरण ले...” जगदीश पण ए सांभळीने ‘हुं भगवान छुं... हुं जीव छुं” एम वारंवार तूटक बोलतो
हतो... ने घणुं दर्द होवा छतां ए ज रीते शांतिपूर्वक देह छोडीने तेनो आत्मा चाल्यो गयो हतो.
अने राजकोटनी दि. जैनपाठशाळामां तत्त्वज्ञाननो अभ्यास करवा जतो हतो, तथा वार्षिक परीक्षामां पास
थयेल हतो. किशोर वयमां आवा धर्मप्रेमनुं बीजाओए पण अनुकरण करवा जेवुं छे.
आ दुर्लभ मनुष्यअवतार मल्यो... तेमां भरोसो नथी के अमुक काळ सुधी ते टकी ज रहेशे! ... गमे ते क्षणे
आत्मानुं हित केम थाय–ते उपाय करवा जेवो छे... आत्महितनुं कार्य भविष्य उपर मुलतवी राखवा जेवुं नथी.
सुख प्राप्त करतां सुख टळे छे. लेश ए लक्षे लहो,
क्षण क्षण भयंकर भावमरणे कां अहो! राची अहो?”
कानजीभाई तरफथी स्व. जेकुंवरबेनना स्मरणार्थे सोनगढना जैन विद्यार्थीगृहना मकान माटे
विद्यार्थीगृहने अर्पण करवामां आव्या छे, ते बदल तेमने धन्यवाद घटे छे.
सोनगढमां “जैनदर्शन शिक्षणवर्ग” चालशे. जे जिज्ञासु जैन भाईओने वर्गमां आववानी
ईच्छा होय तेमणे सूचना मोकली देवी, अने वखतसर आवी जवुं.
सोनगढ,