Atmadharma magazine - Ank 152
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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वैराग्य समाचार
राजकोटमां त्रिभुवनदास वीरजीना पुत्र (वीरजीभाई वकीलना पौत्र) भाई जगदीशचंद्र वैशाख वद ११
ना रोज तावनी बिमारीथी मात्र तेर वर्षनी किशोर वये स्वर्गवास पामी गयेल छे. अंतिम स्थितिए “हुं जीव
छुं... हुं भगवान छुं” एवा रटणपूर्वक देह छोडेल छे. स्वर्गवास अगाउ बे कलाक पहेलांं मुमुक्षुओ तेनी पासे धून
बोलतां, तेमज मांगळिक संभळावता, अने कहेता “जो भाई जगदीश! तारो आत्मा आ बधाथी जुदो छे... आ
शरीर–माता–पिता के सगावहालां कोई तने शरणभूत नथी... भगवान आत्मा एक ज शरणभूत छे...
भगवाननुं शरण ले...” जगदीश पण ए सांभळीने ‘हुं भगवान छुं... हुं जीव छुं” एम वारंवार तूटक बोलतो
हतो... ने घणुं दर्द होवा छतां ए ज रीते शांतिपूर्वक देह छोडीने तेनो आत्मा चाल्यो गयो हतो.
आवी किशोर वयमां ज जगदीशनो स्वर्गवास थई जवा छतां तेमना कुटुंबी जनोए घणी शांति राखी
छे. तेमना कुटुंबमां सौने पू. गुरुदेव प्रत्ये घणो प्रेम अने भक्तिभाव छे. भाई जगदीशने पण धर्मप्रेम हतो
अने राजकोटनी दि. जैनपाठशाळामां तत्त्वज्ञाननो अभ्यास करवा जतो हतो, तथा वार्षिक परीक्षामां पास
थयेल हतो. किशोर वयमां आवा धर्मप्रेमनुं बीजाओए पण अनुकरण करवा जेवुं छे.
पू. गुरुदेव अनेकवार कहे छे के–
आ दुर्लभ मनुष्यअवतार मल्यो... तेमां भरोसो नथी के अमुक काळ सुधी ते टकी ज रहेशे! ... गमे ते क्षणे
ते छूटी जशे... छूट्या पहेलांं अत्यारे पण देह तो आत्माथी जुदो ज छे... माटे अत्यारे ज–आजे ज देहथी जुदा
आत्मानुं हित केम थाय–ते उपाय करवा जेवो छे... आत्महितनुं कार्य भविष्य उपर मुलतवी राखवा जेवुं नथी.
“बहु पुण्य केरा पुंजथी शुभदेह मानवनो मल्यो,
तोये अरे! भवचक्रनो आंटो नहि एके टळ्‌यो;
सुख प्राप्त करतां सुख टळे छे. लेश ए लक्षे लहो,
क्षण क्षण भयंकर भावमरणे कां अहो! राची अहो?”
–श्रीमद् राजचंद्र
श्री सोनगढ जैन विद्यार्थी – गृहने माटे रूा. २५०१ नुं दान
आ जेठ सुद छठ्ठ ना रोज राजकोटना शेठ श्री मोहनलाल कानजीभाई घीयाना स्व.
धर्मपत्नी जेकुंवरबेनना स्वर्गवासनी वार्षिक तिथि हती; आ प्रसंगे शेठ श्री मोहनलाल
कानजीभाई तरफथी स्व. जेकुंवरबेनना स्मरणार्थे सोनगढना जैन विद्यार्थीगृहना मकान माटे
विद्यार्थीगृहने अर्पण करवामां आव्या छे, ते बदल तेमने धन्यवाद घटे छे.
प्रौढवयना गृहस्थो माटे जैनदर्शन शिक्षणवर्ग
दर वर्षनी माफक आ वर्षे पण श्रावण सुद त्रीज ने गुरुवार ता. ९–८–५६ थी शरू
करीने, श्रावण वद आठम ने बुधवार ता. २९–८–५६ सुधी तत्त्वज्ञानना अभ्यास माटे
सोनगढमां “जैनदर्शन शिक्षणवर्ग” चालशे. जे जिज्ञासु जैन भाईओने वर्गमां आववानी
ईच्छा होय तेमणे सूचना मोकली देवी, अने वखतसर आवी जवुं.
आ वखते शिक्षणवर्गमां जैन सिद्धांत प्रवेशिका, द्रव्यसंग्रह, मोक्षमार्गप्रकाशक (अध्याय
९) तथा प्रवचनसार ज्ञेय–अधिकारमांथी केटलोक भाग चालशे. श्री जैन स्वाध्याय मंदिर
सोनगढ,
[सौराष्ट्र]