ATMADHARMA Regd No. B. 4787
छे. आ वात घणी महत्त्वनी छे तेथी तेनी विस्तारथी छणावट थाय छे. कोई कहे के आ वात छंछेडवा
जेवी नथी; (तो पू. गुरुदेव कहे छे के) नहि, –आ वात बराबर छंछेडीने नक्की करवा जेवी छे;
बेधडकपणे आ वात जाहेर करवा जेवी छे. दांडी पीटीने जगतमां आ वात प्रसिद्ध करवा जेवी छे. (...
सभामां हर्षनाद) आ परम सत्य छे. स्वतंत्रतानी आ वात ढंढेरो पीटीने दुनियामां प्रसिद्ध करवा
जेवी छे आ तो जैन धर्मनुं मूळ रहस्य छे; आना निर्णय विना जैन धर्मना एक अक्षरनो पण साचो
अर्थ समजाय नहि ने जरापण धर्म थाय नहि. माटे आ वात समजीने नक्की करवा जेवी छे.
[आ लेखना बीजा भाग माटे आगामी अंकमां जुओ.]
[पेज १४५ नुं अनुसंधान]
आनंद अने ज्ञान जेमां उल्लसी रह्यां छे एवुं आ स्वतत्त्व ज ईष्ट छे. स्यात्कार लक्षणवाळुं जिनशासन
आवा आनंदमय स्वतत्त्वने देखाडे छे. हे जगतना जीवो! स्यात्कारलक्षण जिनशासनना वशे आवा ज्ञान–
आनंदथी उल्लसता स्वतत्त्वने तमे देखो, अंतर्मुख थईने आजे ज तेनी प्राप्ति करो.
केवळज्ञानरूपी सरिता आनंदना अमृतथी भरेली छे, ने तेमां आ स्वतत्त्व डुबेलुं छे–लीन छे. जगतने
जोवाने समर्थ एवा महासंवेदनरूपी ज्ञानलक्ष्मी तेमां मुख्य छे; उत्तम रत्नना किरण जेवुं ते स्पष्ट प्रकाशमान छे,
अने परम ईष्ट छे. आवुं स्वतत्त्व उल्लसी रह्युं छे, तेने जिन–शासनना आश्रये हे जीवो! तमे प्राप्त करो! –एम
आचार्यदेवनी प्रेरणा छे. [पूर्ण]
एक वैराग्य प्रसंग
भाईश्री शीवलाल जेठालाल शेठना धर्मपत्नी सविताबेन ता. १५–५–५६ ना रोज मुंबईमां मेडी उपरथी
अकस्मात पडी जतां स्वर्गवास पाम्या छे. तेमनी उंमर ३९ वर्षनी हती. अवारनवार सोनगढ रहीने तेओ
सत्समागमनो लाभ लेता हता, ने पू. गुरुदेव प्रत्ये तेमनो घणो भक्तिभाव हतो.
लगभग पांच वर्ष पहेलांं शीवलालभाईनो एक पुत्र पण नानी वयमां आ ज प्रमाणे मेडी उपरथी
अकस्मात पडी जतां गुजरी गयो हतो.
संसारचक्रमां मनुष्यपणानी अत्यंत दुर्लभता अने तेमांय वळी जीवननी आवी क्षणभंगुरता देखीने
आत्मार्थी जीवोनी तो आंख ऊघडी जाय तेवुं छे. अने सत्समागम पामीने केम आत्मानुं हित थाय ते ज उपाय
करवा जेवो छे.
सविताबेनना स्वर्गवास बाद तुरत शीवलालभाई सोनगढ आव्या हता, अने आ प्रसंगने
आर्तध्याननुं कारण नहि बनावता, खूब धैर्य राखीने पोताना जीवनने वैराग्य तरफ वाळ्युं छे, ने पू. गुरुदेव
पासे आजीवन ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा अंगीकार करी छे, ते प्रशंसनीय छे. तेओ उदारदिलना अने भक्तिवाळा छे.
सविताबेनना स्मरणार्थे तेमना तरफथी लगभग रूा. १८५०–जुदां जुदां खातामां अर्पण करवामां
आव्या छे.
मुद्रक:– जमनादास माणेकचंद रवाणी, अनेकान्त मुद्रणालय: वल्लभविद्यानगर, (गुजरात)
प्रकाशक:– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, वल्लभविद्यानगर, (गुजरात)