Atmadharma magazine - Ank 152
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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जेठ : २४८२ आत्मधर्म : १५३ :
पोताना शुद्धस्वभाव उपर छे. पोतानो शुद्धस्वभाव अने विकार बंनेने ते जाणे छे, परने पोताथी
भिन्न जाणे छे. आ प्रमाणे निश्चयनय अनुसार अर्थो समजवाथी बधा शास्त्रोना कथननी यथार्थ
संधि जणाय छे, क्यांक परस्पर विरुद्धता भासती नथी. अने अज्ञानीने तो क्यांय मेळ खातोनथी,
निश्चयनय विना वस्तुस्वरूप तेने नक्की थतुं नथी.
निमित्तथी विकार थाय एम व्यवहारनये कह्युं होय त्यां अज्ञानी खरेखर परने कारणे ज
विकार मानीने. निश्चयथी पोतानी पर्याय पोताथी ज छे–ए वात भूली जाय छे, एटले ते पोताना
द्रव्य–गुण–पर्यायनुं यथार्थ स्वरूप जाणतो नथी ने निमित्ताधीनद्रष्टि तेने छूटती नथी. जो
निश्चयनयरूपी चावी लागु करीने अर्थ समजे तो यथार्थ ज्ञान थाय, ने निमित्तने कारणे पोतानी
पर्याय न माने; एटले स्वसन्मुख थईने विकार टाळवानो उपाय पोतामां करे. परने कारणे विकार
थवानुं माने तो ते विकार टाळवानो उपाय तेनामां केम करे? माटे व्यवहारनुं कथन होय तो पण
निश्चयनयथी साचुं स्वरूप शुं छे ते जाणवुं जोईए.
निश्चयथी जेनी जे पर्याय होय ते ज तेनो कर्ता छे; व्य्वहारनय बीजाने कर्ता कहे छे पण
खरेखर ते कर्ता नथी. जेम के–
“कुंभारे घडो कर्यो” एम कह्युं तो त्यां निश्चयनयथी अर्थ करवानी चावी लागु करीने एम
समजवुं के घडो ते कोनी पर्याय छे? –माटीनी के कुंभारनी? घडो ते कुंभारनी पर्याय नथी पण
माटीनी ज पर्याय छे, माटे कुंभार तेनो कर्ता नथी पण माटी ज तेनी कर्ता छे. कुंभारने कर्ता कहेवो ते
तो उपचार छे, यथार्थ नथी.
ए ज प्रमाणे “पेट्रोलथी मोटर चाली” एम व्यवहारे कह्युं, तो त्यां निश्चयनयनी चावी
गाडीने एम समजी लेवुं के खरेखर ते प्रमाणे नथी. पेट्रोलनी अवस्था पेट्रोलमां, ने मोटर चालवानी
अवस्था मोटरमां; निश्चयथी बंने चीज जुदी छे एटले पेट्रोलथी मोटर चाली नथी. मोटर मोटरथी
चाली छे–एम जाणवुं ते यथार्थ छे.
“कर्मना उदयथी जीवने विकार थाय” –एम व्यवहारनुं कथन होय, त्यां निश्चयनयनी चावी
लागु करीने एम समजवुं के विकार ते जीवनी पर्याय छे, ने कर्म जुदी चीज छे, माटे कर्मने लीधे
विकार थयो–एम खरेखर नथी.
श्री गुरुने लीधे शिष्यने ज्ञान थयुं–एम विनयना व्यवहारथी कहेवाय, त्यां पण यथार्थ स्वरूप
शुं छे ते निश्चयनयवडे समजी लेवुं.
शास्त्रमां कोई पण द्रव्य–गुण पर्यायनुं कथन होय त्यां आ वात लागु पाडवी के ते द्रव्य–गुण
पर्याय स्व छे के पर? जो स्वने स्वपणे कह्युं होय तो ते कथन यथार्थ छे, – ‘निश्चयथी एम ज छे’ –
एम जाणवुं; अने जो परने लीधे स्वना द्रव्य–गुण–पर्यायमां कांई पण थवानुं कह्युं होय तो ते कथन
व्यवहारना उपचारनुं छे एटले के ‘खरेखर एम नथी’ एम जाणवुं. आ रीते निश्चय–व्यवहारना
अर्थनो उकेल करीने बधा य द्रव्य–गुण–पर्यायनो निश्चय करवो. निश्चयनय स्व–परनी यथार्थ भिन्नता
बतावीने वस्तुनुं निजस्वरूप जेम छे तेम ओळखावे छे, अने व्यवहारनय तो जुदी वस्तुने
एकबीजामां भेळवीने कहे छे एटले ते यथार्थ स्वरूपने नथी ओळखावतो, माटे निश्चयनयथी ज
असली स्वरूपनो निर्णय थाय छे. –आवी शास्त्रोना अर्थ समजवानी रीत छे. आ संतोना हृदयनुं हार्द