भिन्न जाणे छे. आ प्रमाणे निश्चयनय अनुसार अर्थो समजवाथी बधा शास्त्रोना कथननी यथार्थ
संधि जणाय छे, क्यांक परस्पर विरुद्धता भासती नथी. अने अज्ञानीने तो क्यांय मेळ खातोनथी,
निश्चयनय विना वस्तुस्वरूप तेने नक्की थतुं नथी.
द्रव्य–गुण–पर्यायनुं यथार्थ स्वरूप जाणतो नथी ने निमित्ताधीनद्रष्टि तेने छूटती नथी. जो
निश्चयनयरूपी चावी लागु करीने अर्थ समजे तो यथार्थ ज्ञान थाय, ने निमित्तने कारणे पोतानी
पर्याय न माने; एटले स्वसन्मुख थईने विकार टाळवानो उपाय पोतामां करे. परने कारणे विकार
थवानुं माने तो ते विकार टाळवानो उपाय तेनामां केम करे? माटे व्यवहारनुं कथन होय तो पण
निश्चयनयथी साचुं स्वरूप शुं छे ते जाणवुं जोईए.
माटीनी ज पर्याय छे, माटे कुंभार तेनो कर्ता नथी पण माटी ज तेनी कर्ता छे. कुंभारने कर्ता कहेवो ते
तो उपचार छे, यथार्थ नथी.
अवस्था मोटरमां; निश्चयथी बंने चीज जुदी छे एटले पेट्रोलथी मोटर चाली नथी. मोटर मोटरथी
चाली छे–एम जाणवुं ते यथार्थ छे.
विकार थयो–एम खरेखर नथी.
एम जाणवुं; अने जो परने लीधे स्वना द्रव्य–गुण–पर्यायमां कांई पण थवानुं कह्युं होय तो ते कथन
व्यवहारना उपचारनुं छे एटले के ‘खरेखर एम नथी’ एम जाणवुं. आ रीते निश्चय–व्यवहारना
अर्थनो उकेल करीने बधा य द्रव्य–गुण–पर्यायनो निश्चय करवो. निश्चयनय स्व–परनी यथार्थ भिन्नता
बतावीने वस्तुनुं निजस्वरूप जेम छे तेम ओळखावे छे, अने व्यवहारनय तो जुदी वस्तुने
एकबीजामां भेळवीने कहे छे एटले ते यथार्थ स्वरूपने नथी ओळखावतो, माटे निश्चयनयथी ज
असली स्वरूपनो निर्णय थाय छे. –आवी शास्त्रोना अर्थ समजवानी रीत छे. आ संतोना हृदयनुं हार्द