केवां होय ने राग केवो होय तेनुं पण ज्ञान थई जाय छे–निश्चयनयरूपी आंख उघाडीने जे पोते
पोताने तो जाणतो नथी, ने परथी भिन्न स्वतत्त्वना ज्ञान विना एकला रागने के परने जाणवा
जाय छे ते तो अंध छे, तेने तो व्यवहारनुं पण यथार्थ ज्ञान थतुं नथी, ते तो व्यवहारने ज खरुं
स्वरूप मानीने स्व–परनी एकत्वबुद्धिथी मिथ्यात्व ज सेवे छे.
पदार्थोना स्वरूपनो निर्णय करवानी आ निश्चयनयमां ताकात छे. निश्चयनय वस्तुना स्वरूपने
स्वतत्त्वना आश्रये देखे छे. पर चीजने जुदी राखीने, स्वतत्त्वना आश्रये वस्तुनुं पोतानुं (द्रव्य–गुण
के पर्यायनुं) स्वरूप शुं छे तेने जाणे तो ज यथार्थज्ञान थाय छे, अने ज्ञान निश्चयनयथी ज थाय छे
व्यवहारनय तो परना आश्रये कथन करे छे एटले वस्तुनुं वास्तविक स्वरूप तेनाथी जणातुं नथी.
माटे व्यवहारनयना कथनने खरुं वस्तुस्वरूप न मानी लेवुं पण तेने उपचार जाणवो. निश्चयनय तो
कहे छे के स्व अने पर बंने भिन्न छे, कोईनो अंश बीजामां नथी एटले परनुं कंई कारणपणुं स्वमां
नथी. –आ रीते यथार्थ भिन्नभिन्न स्वरूपने ते बतावे छे; अने व्यवहारनय तो निमित्तमां उपचार
करीने स्वनी वातमां परथी थवानुं कहे छे. तेथी जे जीव ते व्यवहारना कथन प्रमाणे ज खरेखर
वस्तुस्वरूप मानी ल्ये तेने वस्तुना सत्यस्वरूपनी ओळखाण थती नथी. वात चालती होय
स्वतत्त्वनी, अने तेमां परने भेळवीने जाणे तो त्यां परथी भिन्न स्वतत्त्वनुं यथार्थ ज्ञान थतुं नथी.
माटे स्वपरने एकबीजामां जरापण भेळव्या वगर निश्चयनय अनुसार वस्तुस्वरूप जाणवुं ते ज
शब्दब्रह्मना उकेलनी चावी छे, ते ज वस्तुस्वरूपना सम्यग्ज्ञाननो उपाय छे. चारे अनुयोगनी जुदी
जुदी कथन शैलि भले हो, कुंदकुंदप्रभुनुं कथन हो के समत्नभद्रस्वामीनुं कथन हो, –पण तेना अर्थनो
निश्चय तो निश्चयनयद्वारा ज थाय छे. ज्यां ज्यां व्यवहारनुं कथन होय, परथी लाभ नुकसान थवानुं
कह्युं होय, निमित्तथी कार्य थवानुं कह्युं होय, निमित्तनो प्रभाव कह्यो होय, निमित्त वडे विलक्षणता
थवानुं कह्युं होय त्यां त्यां बधे ठेकाणे निश्चयनयने लागु करीने बेधडकपणे समजी लेवुं के खरेखर ए
प्रमाणे नथी. शास्त्रोमां व्यवहारना कथनो घणा छे पण वस्तुनुं स्वरूप एवुं नथी, माटे व्यवहारना
आश्रयनुं फळ संसार छे, ने निश्चयनयथी यथार्थ वस्तुस्वरूप समजवुं तेनुं फळ मोक्ष छे.
अने अर्थोनुं स्वरूप जाणवानुं कह्युं तेमां तो द्रव्य–गुण–पर्याय ए त्रणे पोताना ते निश्चय छे, विकारी
पर्याय पण निश्चयथी स्व छे, ते विकार पोतानी पर्यायथी थयो छे, परने लीधे थयो नथी एम
निश्चयनय जाणे छे. अने आ रीते विकारने पण निश्चयथी पोतानो जाणनार जीवनी द्रष्टि तो