प्रमाणे चरणानुयोगमां व्यवहारनयनुं कथन छे; तेमां भेगी निश्चयनयनी वात मूकीने आचार्यदेव
स्पष्ट खुलासो करे छे के अमे व्यवहारथी कथन कर्युं होय त्यां निश्चयनयथी कथन कर्युं होय त्यां
निश्चयनय लक्षमां राखीने अर्थ समजवो. पोताना द्रव्य गुणपर्याय त्रणे पोताथी छे ने परथी नथी
एम निश्चयनयद्वारा पदार्थनो निश्चय करवो. अने परने कारणे गुणदोष थवानुं कहेवुं ते
व्यवहारकथन छे एटले खरेखर एम वस्तुस्वरूप नथी एवो तेनो अर्थ समजवो. आ शैलिथी
निश्चय व्यवहारना अर्थो समजे तो ज सूत्रना साचा अर्थ समज्यो कहेवाय, अने तो ज यथार्थ
वस्तुस्वरूप समजाय; माटे आ
निश्चयनयवडे सूत्रोनो अने पदार्थोनो निश्चय कर्यो होय तेने ज मुनिपणुं होय. जेओ निश्चयने तो
जाणता नथी अने व्यवहारने ज सत्यार्थ जाणीने आदरे छे तेओ तो पदार्थना निश्चयस्वरूपने नहि
जाणनारा तथा सूत्रने पण नहि जाणनारा स्वेच्छाचारी छे, भ्रष्ट छे.
कथन हो, पण तेनो अर्थ निश्चयनयद्वारा समजे तो ज समजाय. शास्त्रोना अर्थ उकेलवानी आ
चावी चारे अनुयोगना शास्त्रोने लागु पडे छे. अर्थ एटले द्रव्य गुण ने पर्याय बधुंय; तेना
स्वरूपनो निर्णय निश्चयनयद्वारा थाय छे. पर्याय परथी थवानुं कह्युं होय तो त्यां तेने उपचार
जाणीने, स्वाश्रित स्वरूपे शुं छे ते निश्चयनयथी समजी लेवुं. स्वाश्रिततत्त्वना ज्ञानपर्वक ज पराश्रित
व्यवहारनुं (निमित्त वगेरेनुं) ज्ञान बराबर थाय छे. स्वाश्रित तत्त्वनुं स्वरूप जाण्या विना परने
(निमित्त वगेरेने) जाणवा जाय त्यां तो परमां एकत्वबुद्धिथी मिथ्यात्व थई जाय छे. माटे वस्तुना
स्वाश्रित स्वरूपने बतावनार निश्चयनयरूपी
शास्त्रोमां हजारो विवक्षाना गमे तेवा कथन आवे तो पण तेना अर्थ समजवामां मुंझवण थाय नहि,
एवो आ अमोघमंत्र छे.
निर्णय जे करे तेने ज व्यवहारनी खबर पडे. निश्चयथी वस्तुस्वरूप जाण्या वगर व्यवहारनुं भान
यथार्थ न होय, केम के निश्चयने जाण्या विना व्यवहारने जाणवा जाशे ते तो व्यवहारने ज निश्चय
मानीने मूढतानुं पोषण करशे. निश्चयथी स्वाश्रित वस्तुस्वरूप जाणे तेने परनिमित्त