गुणनी रक्षा के वृद्धि थाय छे, ’ –एम जो न जाणे, अने परने कारणे ज गुणनी रक्षा के वृद्धि थवानुं
खरेखर मानी ल्ये तो ते जीव परसंग छोडीने स्व तरफ वळे ज शेनो? माटे व्यवहारना कथनने तो
यथार्थ स्वरूप न मानवुं पण उपचार समजवो, ने निश्चयनय द्वारा यथार्थ वस्तुस्वरूप शुं छे तेनो
निर्णय करवो. आवो निर्णय कर्या पछी ज मुनिदशा होय छे.
भांगीने भूक्को थई जाय छे. –ईत्यादि प्रकारे षट्खंडागम वगेरेमां आचार्य भगवाने कह्युं छे, त्यां
एम समजवुं के ए कथन व्यवहारनयनुं छे, खरेखर परना दर्शनथी सम्यग्दर्शन थतुं नथी, के परना
कारणे कर्मनो नाश थतो नथी. कोई पात्र जीवने वीतरागी जिनबिंबना दर्शन करतां एम अंतर्लक्ष
थई जाय के ‘अहो! मारो आत्मा आवो वीतरागी अक्रिय चैतन्यबिंब छे,’ –एम पोताना
आत्मस्वभावना दर्शनथी सम्यक्त्व प्रगट करे त्यां ‘जिनबिंब दर्शनथी सम्यक्त्व थयुं’ –एम
व्यवहारनय निमित्तमां आरोप करीने कथन करे छे. त्यां निश्चयनयने लक्षमां राखीने एम समजवुं
के सम्यक्त्वनुं खरुं कारण ए नथी, पण उपचारथी ज तेने कारण कहेवामां आव्युं छे.
चीज छे, क्रोध तो जीवनो भाव छे अने कर्म तो जड छे, ए रीते बंने जुदां छे, एटले कर्मने कारणे
खरेखर क्रोध थतो नथी पण जीवनी पर्यायनी ज तेवी लायकातथी क्रोध थयो छे–एम निश्चयनयथी
जाणवुं ते यथार्थ छे; ते क्रोध वखते कर्म निमित्त छे–एम जाणवुं ते पण बराबर छे, परंतु कर्मने
कारणे क्रोध थयो–एम कहेवुं ते तो निमित्तमां आरोप करीने व्यवहारनयनुं कथन छे, ते प्रमाणे
वस्तुस्वरूप नथी. आ रीते निश्चयनय वडे ज यथार्थ वस्तु स्वरूपनो बोध थाय छे. निश्चयनय वडे
पदार्थना स्वरूपनो निर्णय कर्या विना शास्त्रना एक पण कथननो साचो अर्थ थाय नहीं.
एम समजवुं. स्वाश्रय अनुसार अर्थ करीने समजवाथी ज पदार्थनुं वास्तविक स्वरूप ओळखाय छे.