Atmadharma magazine - Ank 152
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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जेठ : २४८२ आत्मधर्म : १४९ :
प्रश्न:– निश्चयनयने ज यथार्थ मानवो ने व्यवहारनयने यथार्थ न मानवो–तेमां एकांत नथी?
उत्तर:– ना; निश्चयनयने तो यथार्थ मानवो ने व्यवहारनयने आरोपीत जाणवो–एटले के
खरेखर एम नथी एम जाणवुं, –तेनुं नाम अनेकान्त छे, तेमां ज बंने नयोनी संधि छे. ए ज रीते
निश्चयनयने भूतार्थ जाणवो अने व्यवहारनयने अभूतार्थ जाणवो–एमां ज बंने नयोनी संधिरूप
अनेकान्त छे, ने तेमां ज बंने नयोनो यथार्थ स्वरूपे स्वीकार छे. आ सिवाय व्यवहारना
आरोपकथनने पण निश्चयनी समान ज यथार्थ मानी ल्ये तो तेणे निश्चय के व्यवहार बेमांथी एकेय
नयना स्वरूपने ओळख्युं नथी.
जुओ, आ शास्त्रना अर्थ समजवानी रीत! निश्चयनय विना साचो अर्थ समजाय नहि.
शास्त्रोमां जे व्यवहारनयनुं कथन होय ते अभूतार्थने बतावनारुं होवाथी तेना वडे यथार्थ
पदार्थज्ञान थतुं नथी. माटे आचार्यदेव कहे छे के सूत्र अने अर्थनो निर्णय निश्चयनयद्वारा थाय छे.
आगमना कथन कई रीते समजवा?
–के निश्चयनयद्वारा.
वस्तुनुं स्वरूप कई रीते समजवुं?
–के निश्चयनयद्वारा.
शास्त्रमां व्यवहारथी कथन कर्युं होय तो?
–तो त्यां पण निश्चयनय वडे वस्तुनुं खरुं स्वरूप शुं छे ते शोधी काढवुं, परंतु व्यवहारकथन
प्रमाणे ज वस्तुस्वरूप न मानी लेवुं. आ रीते ज शास्त्रोना पदोनुं अने अर्थोनुं वास्तविक स्वरूप
समजाय छे.
आ गाथामां ज कहे छे के, जे जीव संयत होय ते पण लौकिकसंगथी असंयत ज थई जाय छे
माटे लौकिकसंग सर्वथा निषेध्य ज छे. –आ पण उपदेशनुं व्यवहारकथन छे. परने कारणे भ्रष्ट
थवानुं कहेवुं ते व्यवहारनयनुं कथन छे एटले के खरेखर एम नथी. निश्चयनयद्वारा एम समजवुं के
पोतानी पर्याय पोताना कारणे छे.
वळी २७० मी गाथामां पण कहेशे के जे दुःखथी मुक्त थवानो अर्थी होय एवा मोक्षार्थीए
समान गुणवाळानी साथे अथवा अधिक गुणवाळानी साथे सदाय वसवुं योग्य छे. जेम शीतळ
स्थानमां राखेलुं पाणी शीतळ रहे छे तेम समान गुणवाळा धर्मात्माना संगथी पोताना गुणनी रक्षा
थाय छे, अने जेम वधारे शीतळ एवा बरफना संगथी पाणी वधारे शीतळ थाय छे तेम विशेष
गुणवाळा धर्मात्माना संगथी पोताना गुणनी वृद्धि थाय छे;–माटे सत्संग करवा जेवो छे ने
असत्संग अर्थात् लौकिकसंग छोडवा जेवो छे.
जुओ, आमां परसंगने कारणे गुणरक्षा के गुणवृद्धि थाय एम कह्युं छे ते पण उपदेशनुं
व्यवहारवचन छे. मुनिओने वृत्ति ऊठे अने परसंग तरफ लक्ष जाय तो आवा निमित्तो तरफ ज
लक्ष जाय छे पण बीजा असत्संग तरफ लक्ष जतु नथी; आटलुं निमित्तपणुं देखीने, ते निमित्तने
लीधे ज गुणनी रक्षा ने गुणनी वृद्धि थवानुं