उत्तर:– ना; निश्चयनयने तो यथार्थ मानवो ने व्यवहारनयने आरोपीत जाणवो–एटले के
निश्चयनयने भूतार्थ जाणवो अने व्यवहारनयने अभूतार्थ जाणवो–एमां ज बंने नयोनी संधिरूप
अनेकान्त छे, ने तेमां ज बंने नयोनो यथार्थ स्वरूपे स्वीकार छे. आ सिवाय व्यवहारना
आरोपकथनने पण निश्चयनी समान ज यथार्थ मानी ल्ये तो तेणे निश्चय के व्यवहार बेमांथी एकेय
नयना स्वरूपने ओळख्युं नथी.
पदार्थज्ञान थतुं नथी. माटे आचार्यदेव कहे छे के सूत्र अने अर्थनो निर्णय निश्चयनयद्वारा थाय छे.
–के निश्चयनयद्वारा.
वस्तुनुं स्वरूप कई रीते समजवुं?
–के निश्चयनयद्वारा.
शास्त्रमां व्यवहारथी कथन कर्युं होय तो?
–तो त्यां पण निश्चयनय वडे वस्तुनुं खरुं स्वरूप शुं छे ते शोधी काढवुं, परंतु व्यवहारकथन
समजाय छे.
थवानुं कहेवुं ते व्यवहारनयनुं कथन छे एटले के खरेखर एम नथी. निश्चयनयद्वारा एम समजवुं के
पोतानी पर्याय पोताना कारणे छे.
स्थानमां राखेलुं पाणी शीतळ रहे छे तेम समान गुणवाळा धर्मात्माना संगथी पोताना गुणनी रक्षा
थाय छे, अने जेम वधारे शीतळ एवा बरफना संगथी पाणी वधारे शीतळ थाय छे तेम विशेष
गुणवाळा धर्मात्माना संगथी पोताना गुणनी वृद्धि थाय छे;–माटे सत्संग करवा जेवो छे ने
असत्संग अर्थात् लौकिकसंग छोडवा जेवो छे.
लक्ष जाय छे पण बीजा असत्संग तरफ लक्ष जतु नथी; आटलुं निमित्तपणुं देखीने, ते निमित्तने
लीधे ज गुणनी रक्षा ने गुणनी वृद्धि थवानुं