Atmadharma magazine - Ank 152
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: १४८ : आत्मधर्म जेठ : २४८२
तो यथार्थ वस्तुस्वरूपनो निर्णय थई शकतो नथी.
आ संबंधमां पं. टोडरमल्लजीए घणो स्पष्ट खुलासो मोक्षमार्ग प्रकाशकमां कर्यो छे. त्यां
शास्त्रोना अर्थ करवानी पद्धति बतावतां तेओ कहे छे के–
व्यवहारनय स्वद्रव्य–परद्रव्यने वा तेना भावोने वा कारण–कार्यादिकने कोईना कोईमां मेळवी
निरूपण करे छे माटे एवा ज श्रद्धानथी मिथ्यात्व छे तेथी तेनो त्याग करवो. वळी निश्चयनय तेने
ज यथावत् निरूपण करे छे तथा कोईने मेळवतो नथी तेथी एवा ज श्रद्धानथी सम्यक्त्व थाय छे
माटे तेनुं श्रद्धान् करवुं.”
वळी जिनमार्गमां बंने नयोनुं ग्रहण करवानुं कह्युं छे–ते बाबतमां खुलासो करतां तेओ
जणावे छे के–
“जिनमार्गमां कोई ठेकाणे तो निश्चयनयनी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने तो ‘सत्यार्थ
एम ज छे’ एम जाणवुं, तथा कोई ठेकाणे व्यवहारनयनी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने ‘एम
नथी पण निमित्तादिनी अपेक्षाए ए उपचार कर्यो छे’ एम जाणवुं; अने ए प्रमाणे जाणवानुं नाम
ज बंने नयोनुं ग्रहण छे. पण बंने नयोना व्याख्यानने समान सत्यार्थ जाणी ‘आ प्रमाणे पण छे
तथा आ प्रमाणे पण छे’ एवा भ्रमरूप प्रवर्तवाथी तो बंने नयो ग्रहण करवा कह्या नथी.”
समयसारमां पण स्पष्ट कह्युं छे के व्यवहारनय अभूतार्थ छे, एटले तेना आश्रये सम्यक्
दर्शन थतुं नथी. शुद्धनय भूतार्थ छे, तेना ज आश्रये सम्यग्दर्शन थाय छे:–
ववहारोंऽभूयत्थो भूयत्थो दु देसिदो सुद्धणओ।
भूयत्थमस्सिदो खलु सम्भाइट्ठी हवइ जीवो।। ११।।
अहीं प्रवचनसारना चालता अधिकारमां पण, “निश्यनयान्निश्चितसूत्रार्थप दत्वेन...”
निश्चयनयद्वारा सूत्रना पदो अने अर्थोनो निश्चय थवानुं कहीने मूळ सिद्धांत बताव्यो छे.
जैनशासननुं आ मूळ रहस्य छे, आ बधा प्रश्नोना उकेलनी चावी (मास्टर की) छे.
हवे, आ रीते निश्चयनयरूपी चावी (मास्टर की) थी शास्त्रोना अर्थ समजवाना केटलाक
दाखला लईए–
‘ज्ञानावरणीयकर्मना उदयथी ज्ञान अवराय’ एम शास्त्रमां कह्युं छे, त्यां निश्चयनयरूपी चावी
लागु करीने तेनो अर्थ एम समजवो के खरेखर ते प्रमाणे नथी, पण ते तो निमित्तमां आरोप
करीने व्यवहारनयनुं कथन छे. निश्चयथी तो ज्ञान अने कर्म बंने जुदा छे, तेथी कर्मना कारणे
ज्ञाननी अवस्था रोकाणी नथी, पण पोतानी लायकातथी ज्ञाननी अवस्था हीनरूपे परिणमी छे त्यां
कर्मनुं निमित्तपणुं देखीने व्यवहारनये एकनो बीजामां आरोप करी दीधो के कर्मने लीधे ज्ञान ढंकाणुं.
–पण खरेखर एम नथी. आ आ रीते निश्चयनयद्वारा सूत्रना अर्थनो एम निर्णय करवो के
ज्ञानावरणीयकर्मने लीधे ज्ञान नथी अवरायुं, ज्ञान अने जडकर्म बंने जुदा जुदा छे. आ रीते
निश्चयनयवडे समजवाथी ज यथार्थ वस्तुस्वरूपनुं ने सूत्रनुं ज्ञान थाय छे. जो आ प्रमाणे न समजे
ने व्यवहारना कथन प्रमाणे ज मानी ल्ये तो बे पदार्थोनी एकताबुद्धि टळे नहि एटले यथार्थ
वस्तुस्वरूपनो के सूत्रनो निर्णय थाय नहि ने अज्ञान मटे नहि.