शब्द अने अर्थ ए बंनेनो निर्णय करनारुं ज्ञान पण सत् लक्षणवाळुं छे.
निश्चयनयद्वारा.
एटले के वस्तुना द्रव्य–गुण–पर्याय शुं, ने तेनो निश्चय करनारुं ज्ञान शुं? ए त्रणेनी वात आमां
आवी जाय छे.
प्रयोजन ज्ञानस्वभाव बताववानुं छे. अने आवा ज्ञानस्वभावनो निर्णय निश्चयनयद्वारा थाय छे,
एकला व्यवहार द्वारा ज्ञानस्वभावनो निर्णय थतो नथी. निश्चयनयद्वारा ज्ञान स्वभावनो निर्णय
कर्या वगर कोई पण तत्त्वनो (उपादान–निमित्तनो, देव–गुरु–धर्मनो, शास्त्रनो वगेरे कोई पण
तत्त्वनो) यथार्थ निर्णय थाय ज नहि अने तत्त्वना निर्णय वगर एकाग्रता रूप मुनिदशा होई शके
नहि. माटे कह्युं के ‘ज्ञातृतत्त्व निश्चयनयद्वारा सूत्रनां पदो अने अर्थोना निश्चयवाळुं होय... ’ एटले
के मुनिओए निश्चयनयना अवलंबनथी सूत्रोनो अने सूत्रोमां वस्तुस्वरूपनो निश्चय कर्यो होय.
पण भ्रष्ट छे, भगवाननी आज्ञाथी बहार छे, केमके भगवानना कहेला सूत्रोना अभिप्रायनी तेने
खबर नथी, ने पोताना मिथ्या अभिप्रायथी ते शास्त्रना ऊंधा अर्थो करे छे. –आवा ऊंधी द्रष्टि
पोषनारा जीवो पण खरेखर लौकिकजनो जेवा ज छे. अहीं एम कहेवुं छे के एवा ऊंधी द्रष्टिपोषक
लौकिक जनोना संगथी संयमी मुनि पण असंयत थई जाय छे माटे ते लौकिकसंग सर्वथा निषेध्य ज
छे. –जुओ, शास्त्रनुं आ कथन पण निमित्तथी छे. त्यां शास्त्रोना अर्थ समजवानी चावी लागु करीने
अर्थ समजवो जोईए. –कई चावी? “निश्चयनद्वारा सूत्रनां पदोनो अने अर्थोनो निश्चय थाय छे.”
–आ सर्व शास्त्रोना अर्थ उकेलवानी कुंची (
परने कारणे भ्रष्ट थता नथी पण पोतानी ज पर्यायना अपराधने लीधे ज भ्रष्ट थाय छे. पोताना
असंगचैतन्यस्वभावना संगथी च्यूत थईने परसंगनो प्रेम थयो ते ज भ्रष्टपणुं छे; पर निमित्तने
कारणे भ्रष्ट थवानुं कह्युं ते व्यवहारकथन छे एटले खरेखर एम नथी. निश्चयनयनुं कथन स्व–परने
एक बीजामां जराय भेळव्या वगर, जेम छे तेम यथार्थ वस्तुस्वरूप बतावे छे, अने व्यवहारनय तो
स्व–परने एक बीजामां भेळवीने कथन करे छे. तेथी जो निश्चयनयने भूलीने व्यवहार प्रमाणे अर्थ
करवा जाय