आ प्रवचनसारनी २६८ मी गाथा वंचाय छे. आ चरणानुयोग संबंधी अधिकार होवा छतां,
बतावे छे; केम के आ मूळ प्रयोजनभूत वात छे. निश्चयनयवडे सूत्रना पदोनो अने अर्थोनो निश्चय
कर्या वगर चरणानुयोग के मुनिदशा यथार्थ होय ज नहि. माटे आचार्यदेव आ गाथामां कहे छे के
मुनि ‘सूत्रार्थ निश्चयवंत’ होय छे एटले के मुनिए सूत्रनां पदोने अने अर्थोने निश्चित कर्यां छे.
सूत्रनां पदोनो अने अर्थोनो निश्चय कई रीते थाय छे–ते बाबत स्पष्ट खुलासो करतां टीकामां श्री
अमृतचंद्रसूरि कहे छे के–“विश्वनो वाचक, ‘सत्’ लक्षणवाळो एवो जे आखोय शब्दब्रह्म अने ते
शब्द ब्रह्मनुं वाच्य, सत्’ लक्षणवाळुं एवुं जे आखुंय विश्व ते बन्नेना ज्ञेयाकारो पोतानामां युगपद
गुंथाई जवाथी (–ज्ञातृतत्त्वमां एकी साथे निर्णीत थवाथी) ते बंनेना अधिष्ठानभूत ‘सत्’
लक्षणवाळुं ज्ञातृतत्त्व निश्चयनयद्वारा ‘सूत्रना पदो अने अर्थोना निश्चयवाळुं’ होय...”
यथार्थ वस्तुस्वरूपने बतावनार छे; अने व्यवहारनय तो एकबीजामां आरोप करीने कथन करे छे
तेथी तेना द्वारा यथार्थ वस्तुस्वरूपनो निर्णय थतो नथी.
ते निर्णय कई रीते थाय? –के निश्चयनयद्वारा सूत्रना पदो अने अर्थोनो निश्चय थाय छे. जेओ
निश्चयनय–अनुसार वस्तुस्वरूप शुं छे ते तो समजता नथी अने व्यवहारनयना कथन प्रमाणे ज
वस्तुस्वरूप मानी ल्ये छे तेओने सूत्रनां पदनो के अर्थनो निश्चय करतां आवडतो नथी.