Atmadharma magazine - Ank 152
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: १४६ : आत्मधर्म जेठ : २४८२
सूत्रनां पदोनो अने पदार्थोना
स्वरूपनो निश्चय करवानी रीत
* • *
‘निश्चयनयद्वारा सूत्रनां पदो अने अर्थोनो निश्चय थाय छे.’
[ स्त्र र् MASTER KEY]
श्र प्र . रु त्त् प्र.
[लेखांक पहेलो]

आ प्रवचनसारनी २६८ मी गाथा वंचाय छे. आ चरणानुयोग संबंधी अधिकार होवा छतां,
‘यथार्थ वस्तुस्वरूपनो निर्णय निश्चयनयद्वारा थाय छे’ –ए वात आचार्यदेव भेगी ने भेगी ज
बतावे छे; केम के आ मूळ प्रयोजनभूत वात छे. निश्चयनयवडे सूत्रना पदोनो अने अर्थोनो निश्चय
कर्या वगर चरणानुयोग के मुनिदशा यथार्थ होय ज नहि. माटे आचार्यदेव आ गाथामां कहे छे के
मुनि ‘सूत्रार्थ निश्चयवंत’ होय छे एटले के मुनिए सूत्रनां पदोने अने अर्थोने निश्चित कर्यां छे.
सूत्रनां पदोनो अने अर्थोनो निश्चय कई रीते थाय छे–ते बाबत स्पष्ट खुलासो करतां टीकामां श्री
अमृतचंद्रसूरि कहे छे के–“विश्वनो वाचक, ‘सत्’ लक्षणवाळो एवो जे आखोय शब्दब्रह्म अने ते
शब्द ब्रह्मनुं वाच्य, सत्’ लक्षणवाळुं एवुं जे आखुंय विश्व ते बन्नेना ज्ञेयाकारो पोतानामां युगपद
गुंथाई जवाथी (–ज्ञातृतत्त्वमां एकी साथे निर्णीत थवाथी) ते बंनेना अधिष्ठानभूत ‘सत्’
लक्षणवाळुं ज्ञातृतत्त्व निश्चयनयद्वारा ‘सूत्रना पदो अने अर्थोना निश्चयवाळुं’ होय...”
जुओ, आ मुनिनुं लक्षण! अने सूत्रना पदोनो तथा तेना वाच्यरूप अर्थनो निश्चय करवानी
आ रीत! आखा विश्वना कोई पण पदार्थनो निर्णय निश्चयनयद्वारा थाय छे, केम के निश्चयनय
यथार्थ वस्तुस्वरूपने बतावनार छे; अने व्यवहारनय तो एकबीजामां आरोप करीने कथन करे छे
तेथी तेना द्वारा यथार्थ वस्तुस्वरूपनो निर्णय थतो नथी.
अहीं तो आखाय शब्द ब्रह्मानो एटले के भगवाने कहेला चारे अनुयोगना बधाय शास्त्रोनो
तथा तेना वाच्यरूप आखाय विश्वनो एटले के बधाय द्रव्य–गुण–पर्यायनो निर्णय करवानी वात छे.
ते निर्णय कई रीते थाय? –के निश्चयनयद्वारा सूत्रना पदो अने अर्थोनो निश्चय थाय छे. जेओ
निश्चयनय–अनुसार वस्तुस्वरूप शुं छे ते तो समजता नथी अने व्यवहारनयना कथन प्रमाणे ज
वस्तुस्वरूप मानी ल्ये छे तेओने सूत्रनां पदनो के अर्थनो निश्चय करतां आवडतो नथी.