ज्ञानी गुरु पण एम कहे छे के ‘तारो आनंद तारामां छे, तेमां अंतर्मुख था;’ –एवी ज्यारे प्रतीत करी
आत्मानो अनुभव करे छे. समयसारमां पण ३८ मी गाथामां कहे छे के–“जे अनादि मोहरूप अज्ञानथी
उन्मत्तपणाने लीधे अत्यंत अप्रतिबुद्ध हतो अने विरक्त गुरुथी निरंतर समजाववामां आवतां जे कोई प्रकारे
समजी, सावधान थई... पोताना परमेश्वर आत्माने... जाणीने... सम्यक् प्रकारे एक आत्मराम थयो...”
झंखना लागी छे, चोवीसे कलाक वारंवार तेनुं चिंतवन करे छे, आत्माने प्राप्त करवानी धून थई गई छे, तेनी
ज चाह छे; माटे कहे छे के श्रीगुरुद्वारा तेने निरंतर समजाववामां आवे छे. वारंवार तेने ए ज घोलन चाले छे;
अंदरमां चैतन्यस्वभावने पकडवा मांगे छे. त्यां पहेलांं बहुमाननो विकल्प छे, तेथी उपचारथी एम कह्युं के ते
विकल्परूप क्रिया वडे ज्ञान पामे छे; पण खरेखर तो विकल्पने छोडीने तेनाथी पार ज्ञानस्वभावमां एकाग्र थाय
छे त्यारे ज सम्यग्दर्शनने सम्यग्ज्ञान पामे छे.
तरफना बहुमाननो भाव ते निमित्तरूप छे; तेने अहीं क्रियाकांड कह्यो छे. पण ते विकल्पमां ज रोकाई रहे तो कांई ते
क्रियाकांड वडे ज ज्ञाननी प्राप्ति थती नथी. पहेलांं आत्मा तरफनो विकल्प हतो ते तोडीने, अंतरमां चैतन्यस्वभावने
पकडीने केवळ आत्मभावनाथी सम्यग्ज्ञान थयुं, त्यां पूर्वना विकल्पने क्रियाकांड गणीने तेना द्वारा ज्ञान थवानुं कह्युं.
परिणतिने अंतरमां एकाग्र करी त्यारे सम्यग्ज्ञान थयुं, ने आनंदमय आत्मानी प्राप्ति थई.
परिणमतो नथी. आ रीते आत्मस्वभावनुं अवलंबन करी करीने अनंता जीवो मोक्ष पाम्या छे. जेम बहारमां
सम्मेदशिखरजीथी अनंता तीर्थंकरो–संतो मुक्ति पाम्या छे, तेम अंतरमां ते बधाय जीवो चैतन्यना शिखररूप
आ आत्मस्वभावना आधारे मुक्ति पाम्या छे. आ चैतन्यना सम्मेदशिखर उपर आरूढ थवुं ते ज मोक्षनी
यात्रा छे.
आत्माना परम आनंदना जमणनुं सागमटे नोतरुं दीधुं छे. जगतना बधाय जीवो आत्माना आनंदने आजे ज
अवश्य प्राप्त करो. आत्मानी प्राप्तिनो अमे जे उपाय कह्यो ते उपायथी ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी जरूर प्राप्ति
थाय छे, माटे आ रीते जगत ज्ञानानंदस्वरूप आत्माने आजे ज प्राप्त करो–एम आचार्यदेवनुं आमंत्रण, आदेश
अने उपदेश छे.