करवामां एवा लीन छे के शरीरने वस्त्रथी ढांकवानी के उदीष्ट आहार
लेवानी वृत्ति तेमने ऊठती नथी. –आवा ज मुनिओ मोक्षमार्गी छे. आ
सिवाय जेमने अंतरमां चैतन्यनी ध्यानदशा थई नथी ने शुभरागमां ज धर्म
मानीने वर्ते छे एवा द्रव्यलिंगी मुनिओने मोक्षमार्गमां स्वीकारवामां
आवता नथी.
शूरवीर छे.....कृतकृत्य छे.....पंडित छे.....आ प्रमाणे सम्यक्त्वनो परम महिमा
जाणीने तेने अंगीकार करो.
स्वभावना अनुभव सहित तेमां एटलो झूकाव थई गयो छे के घणा ज अतीन्द्रिय आनंदना वेदनमां लीन छे, त्यां
बहारना लौकिक कार्योनी तो वृत्ति ज नथी ऊठती. हुं तो एकाकी ज्ञानस्वभाव छुं, ते सिवाय त्रण लोकमां कांई पण
मारुं नथी.–आवा अंतरना अनुभवपूर्वक अंतरना एकाकी आत्मामां लीन थईने तेमां रमणता करे छे,
आतमराममां रमणता करे छे, ने क्षणेक्षणे निर्विकल्प आनंदमां लीन थाय छे.–आवी मोक्षना साधक मुनिओनी दशा
होय छे.
अषाढः २४८२