Atmadharma magazine - Ank 153
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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मोक्षमार्गी मुनि केवा होय?
* अने *
श्रावकोनुं कर्तव्य शुं
(मोक्षप्राभृत गा. ८० थी ८९ उपरना प्रवचनोमांथी)
अहो! मोक्षना साधक मुनिवरो जगतथी एकदम निस्पृह होय छे, ए
वीतरागी संतो अंतरमां एकाग्र थईने आत्माना आनंदनो अनुभव
करवामां एवा लीन छे के शरीरने वस्त्रथी ढांकवानी के उदीष्ट आहार
लेवानी वृत्ति तेमने ऊठती नथी. –आवा ज मुनिओ मोक्षमार्गी छे. आ
सिवाय जेमने अंतरमां चैतन्यनी ध्यानदशा थई नथी ने शुभरागमां ज धर्म
मानीने वर्ते छे एवा द्रव्यलिंगी मुनिओने मोक्षमार्गमां स्वीकारवामां
आवता नथी.
हे श्रावक!
हे श्रावक! सम्यग्दर्शनने मेरुवत निश्चल धारण करीने तेने ध्याव!
सिद्धिकर एवा सम्यक्त्वने जेणे स्वप्ने पण मलिन कर्युं नथी ते धन्य छे.....
शूरवीर छे.....कृतकृत्य छे.....पंडित छे.....आ प्रमाणे सम्यक्त्वनो परम महिमा
जाणीने तेने अंगीकार करो.
भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेव आ मोक्षप्राभृतमां मोक्षमार्गी मुनिवरोनी केवी दशा होय ते कहे छेः पहेलां तो
मोहरहित भावनिर्गंथता होय; ने बाह्यमां पण वस्त्रादि रहित निर्ग्रंथ दशा होय. मोक्षमार्गी संतोने ज्ञान–आनंद
स्वभावना अनुभव सहित तेमां एटलो झूकाव थई गयो छे के घणा ज अतीन्द्रिय आनंदना वेदनमां लीन छे, त्यां
बहारना लौकिक कार्योनी तो वृत्ति ज नथी ऊठती. हुं तो एकाकी ज्ञानस्वभाव छुं, ते सिवाय त्रण लोकमां कांई पण
मारुं नथी.–आवा अंतरना अनुभवपूर्वक अंतरना एकाकी आत्मामां लीन थईने तेमां रमणता करे छे,
आतमराममां रमणता करे छे, ने क्षणेक्षणे निर्विकल्प आनंदमां लीन थाय छे.–आवी मोक्षना साधक मुनिओनी दशा
होय छे.
हुं तो आनंदस्वभावथी भरेलो एकाकी आत्मा छुं, ज्ञान–आनंदमय आत्मा सिवाय बहारमां बीजुं कांई
पण मारुं नथी;–आवा श्रद्धा–ज्ञान उपरांत वारंवार तेनी भावना करीने तेमां लीनतानो प्रयत्न करे छे.–आवा
अषाढः २४८२
ः १प७ः