Atmadharma magazine - Ank 154
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष तेरमुं : संपादक: श्रावण
अंक दसमो रामजी माणेकचंद दोशी २४८२
निर्णय
सौथी पहेलांं ज्ञानस्वभावनो निर्णय करवा
उपर खास भार मूकीने पू. गुरुदेव कहे छे के–
‘हुं ज्ञानस्वभाव ज छुं’ –एवा निर्णय वगर
केवळज्ञानीना आत्माने के संतोना आत्माने खरेखर
ओळखी शकाय नहि.
एक वार तो ज्ञानस्वभावनो एवो द्रढ
निर्णय थई जवो जोईए के बस! पछी वीर्यनो वेग
स्व तरफ ज वळे.
आखुं जगत भले फरी जाय पण पोते
ज्ञानस्वभावनो जे निर्णय कर्यो ते न फरे..... ते
निर्णयमां शंका न पडे; आवा निःशंक निर्णय विना
वीर्यनो वेग स्वभाव तरफ वळे ज नहि.
(चर्चामांथी)
वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)