भगवानी प्रसादी
आचार्यदेव कहे छे के मारा आत्मा समस्त
निजवैभवथी हुं आ समयसारमां एकत्व–विभक्त
आत्मानुं स्वरूप कहीश. निजवैभवनुं वर्णन करतां तेओश्री
कहे छे के पर–अपर गुरुओए एटले के तीर्थंकरोए अने
गणधरादि गुरुओए परम अनुग्रहपूर्वक अमने उपदेश
आप्यो.... शुं उपदेश आप्यो? –शुद्धात्मतत्त्वनो उपदेश
आप्यो.... तेनाथी मारा निजवैभवनो जन्म थयो छे.
सर्वज्ञथी मांडीने अमारा गुरु पर्यंतना सर्वे गुरुओए
अमने परम अनुग्रह पूर्वक शुद्धात्मतत्त्वनो ज उपदेश
आप्यो छे.... चारे अनुयोगमां ए ज उपदेश आप्यो.... ए
ज भगवाननी ने गुरुओनी प्रसादी छे. भगवंतोए अने
गुरुओए अमारा उपर प्रसन्न थईने अमने प्रसादी तरीके
शुद्धात्मानो उपदेश आप्यो.... ने अमे झील्यो..... भगवाने
प्रसन्न थईने प्रसादीरूपे जे शुद्धात्मतत्त्वनो उपदेश अमने
आप्यो ते ज अमे अहीं बतावशुं.
उपदेश मळ्यो, तेनाथी अमारो निजवैभव प्रगट्यो छे.
विकारना के निमित्तना उपदेशथी निजवैभव नथी प्रगट्यो
पण शुद्धात्मतत्त्वना उपदेशथी ज निजवैभव प्रगट्यो छे.
अशुद्धता होवा छतां शुद्धात्मतत्त्वनो ज उपदेश भगवाने
आप्यो छे. भगवानना उपदेशमां अशुद्धतानुं ने निमित्तोनुं
ज्ञान तो कराव्युं छे पण तेनी मुख्यता नथी करावी,
शुद्धात्मानी ज मुख्यता (–आदर, आश्रय) करावेल छे, माटे
भगवाने शुद्धात्मानो ज उपदेश आप्यो छे.
भगवाने अने संतोए अनुग्रहपूर्वक–कृपापूर्वक–
प्रसन्नतापूर्वक अमने जे उपदेश आप्यो तेमां अमने
शुद्धात्मतत्त्वनो ज उपदेश आप्यो.... अमने स्वीकारीने–
अनुगृहीत करीने शुद्धात्मतत्त्व शीखव्युं.... ते सर्वज्ञोना अने
संतोना सर्व उपदेशनो जे सार छे ते अमे निजवैभवथी आ
समयसारमां दर्शावीए छीए.... आ समयसारमां जेवुं
शुद्धात्मस्वरूप दर्शावीए छीए तेवो ज उपदेश करीने जे जे
पुण्यने धर्म मनावे तेणे खरेखर जैनशासननो उपदेश
मळ्यो ज नथी, भगवाननो के संतोना अनुग्रह तेना उपर
थयो ज नथी. (–स. गा. ५ उपरना प्रवचनमांथी)
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