Atmadharma magazine - Ank 155
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष तेरमुं : संपादक : भादरवो
अंक अगियारमो रामजी माणेकचंद दोशी २४८२
आनुं नाम धगश!
जेने आत्मानी खरी धगश जागे...आत्मानी खरी गरज थाय ते जीवनी दशा केवी
होय? ते समजावतां एकवार पू. गुरुदेवे कह्युं हतुं के–
आत्मार्थीने सम्यग्दर्शन पहेलांं स्वभाव समजवा माटे एटलो तीव्र रस होय के
श्रीगुरु पासेथी स्वभाव सांभळतां ज ते ग्रहण थईने आत्मामां गरी जाय... आत्मामां
परिणमी जाय... – ‘अहो! मारो आवो स्वभाव गुरुए बताव्यो...’ एम गुरुनो उपदेश
ठेठ आत्मामां स्पर्शी जाय...
जेम कोरा घडा उपर पाणीनुं टीपुं पडतां ज ते चूसी ल्ये छे, अथवा धगधगता
लोढा उपर पाणीनुं टीपुं पडतां ज ते चूसी ल्ये छे, तेम दुःखथी अति संतप्त थयेला
आत्मार्थी जीवने, श्रीगुरु पासेथी शांतिनो उपदेश मळतां ज ते तेने चूसी ल्ये छे एटले के
तरत ज ते उपदेशने पोताना आत्मामां परिणमावी द्ये छे.
आत्मार्थीने स्वभावनी जिज्ञासा अने झंखना एवी उग्र होय के ‘स्वभाव’
सांभळतां तो हृदयमां सोंसरवट ऊतरी जाय... अरे, ‘स्वभाव’ कहीने ज्ञानी शुं बताववा
मांगे छे! –एनुं ज मारे ग्रहण करवुं छे... आम रूंवाटे रूंवाटे स्वभाव प्रत्येनो उत्साह जागे
ने वीर्यनो वेग स्वभाव तरफ वळी जाय. स्वभाव प्राप्त कर्ये ज छूटको... त्यां सुधी तेने चेन
न पडे.
–आवी दशा थाय त्यारे आत्मानी खरी धगश कहेवाय.
वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)