Atmadharma magazine - Ank 155
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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–आत्मा अने अनात्माना भेदज्ञान वगर ख्याति–पूजा–लाभ वगेरेनी ईच्छाथी अज्ञानी जीव देहने दाह
करनारी विविध प्रकारनी जे क्रिया (पंचाग्नि तप वगेरे) करीने शरीरने क्षीण करे छे, ते बधुंय गृहीतमिथ्या–
चारित्र छे–एम जाणीने हे जीव! मिथ्याश्रद्धा–ज्ञान चारित्रने तुं छोड...... अने आत्महितना पंथे लाग. आ
जगतनी जाळमां भ्रमण करवुं छोड, ने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वडे निज आत्मामां मग्न था.
प्रश्न:– (४) : नीचेना प्रश्नोनो जवाब लखो–
(१) कया कया द्रव्यो गति करे छे? तेमां उपादान अने निमित्त शुं छे?
(२) शरीरोनां नाम लखो; सौथी वधारे शरीर कोने होय?
(३) पुद्गलपरमाणुने शा माटे अस्तिकाय कह्यो छे?
(४) कर्मो आत्माने रखडावे छे एम माननारे क्यो अभाव न मान्यो?
(५) क्यो जीव क्यारे लोकाकाश बराबर थाय छे?
(६) प्रत्यभिज्ञाननुं कारण कोण छे?
(७) महावीरभगवान मोक्ष पाम्या–तेमां उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य समजावो.
(८) वर्तमान विचरता सीमंधर भगवाननो प्रागभाव अने प्रध्वंसाभाव बतावो.
उत्तर: (४)
(१) छ द्रव्योमांथी जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्यो ज गति करे छे; तेमां उपादान ते ते द्रव्योनो क्रियावती
शक्तिनुं परिणमन छे, ने निमित्त धर्मास्तिकाय छे.
(२) शरीरो पांच छे–औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस अने कार्मण; तेमांथी, छठ्ठागुणस्थानवर्ती
कोई मुनिने सूक्ष्म तत्त्वमां शंका थतां तेना समाधान माटे आहारक शरीर प्रगटे छे ने निकटमां बिराजमान
केवळी–श्रुतकेवळी पासे जईने शंकानुं समाधान करे छे; आ प्रसंगे ते मुनिने सौथी वधारे (चार) शरीरो होय
छे, ते आ प्रमाणे–औदारिक, आहारक, तैजस, अने कार्मण.
(३) पुद्गलपरमाणु एकप्रदेशी होवाथी, निश्चयथी जो के ते अस्तिकाय नथी, पण स्पर्शगुणना कारणे
अनेक परमाणुओ स्कंदरूप थाय छे, ते अपेक्षाए बहुप्रदेशो होवाथी तेने अस्तिकाय पण कहेवाय छे.
(४) कर्मो आत्माने रखडावे छे एम जेओ माने छे तेओ कर्म अने आत्मा वच्चेना अत्यंत–अभावने मानता
नथी. आत्मा अने कर्म ए बंनेनो एकबीजामां अत्यंत–अभाव छे, तेथी कर्म आत्माने रखडावे ए वात साची नथी.
(५) मोक्ष जतां पहेलांं जे केवळीभगवानने समुद्घात थाय छे ते केवळीभगवाननो आत्मा ते
समुद्घात वखते लोकाकाश बराबर थाय छे.
(६) ‘आ ते ज छे’ ईत्यादि प्रकारना प्रत्यभिज्ञाननुं कारण द्रव्यनी धु्रवता छे. जो द्रव्य कथंचित् धु्रव न
होय तो तेनुं प्रत्यभिज्ञान न थई शके.
(७) ‘भगवान महावीर मोक्ष पाम्या’ –त्यां मोक्षदशानो उत्पाद थयो, संसारदशानो व्यय थयो, ने
भगवानना आत्मानी धु्रवता रही. –ए रीते एकसाथे उत्पाद–व्यय–धु्रवता छे.
(८) वर्तमान अरहंतपदे बिराजता श्री सीमंधर भगवाननो तेमनी अल्पज्ञतारूप पूर्वपर्यायमां जे
अभाव छे ते प्राग्–अभाव छे, अने भविष्यनी सिद्धिपर्यायमां जे अभाव छे ते प्रध्वंस–अभाव छे.
प्रश्न: (५) :– नीचेना पदार्थोनी व्याख्या लखो.
(१) वस्तुत्वगुण (२) बंध (३) जीव (४) स्वभाव–अर्थपर्याय (५) प्रदेश (६) अनुजीवीगुण
(७) अन्योन्याभाव
उत्तर: (प)
(१) वस्तुत्वगुण:– जे शक्तिना कारणे द्रव्यमां अर्थक्रिया होय तेने वस्तुत्वगुण कहे छे; जेम पाणीने
धारण करवुं ते घडानी अर्थक्रिया छे तेम पोतपोताना गुणपर्यायोने धारण करवा ते दरेक द्रव्यनी अर्थक्रिया छे.
(२) बंध:– अनेक चीजोमां एकपणानुं ज्ञान कराववावाळा संबंधविशेषने बंध कहे छे.
(३) जीव:– जेनामां हंमेशा चेतनागुण होय ते जीव छे.
(४) स्वभावअर्थपर्याय:– बीजाना निमित्त वगर जे अर्थपर्याय होय तेने स्वभावअर्थपर्याय कहे छे;
जेम के जीवनी केवळज्ञान पर्याय.
(५) प्रदेश:– आकाशना जे सौथी नाना भागने एक परमाणु रोके तेटला भागने ‘प्रदेश’ कहे छे; तेना
बे भाग कल्पी शकाता नथी.
(६) अनुजीवीगुण:– वस्तुना ‘भावस्वरूप’ गुणोने अनुजीवीगुण कहे छे: जेम के जीवमां श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र
(शेषांक माटे जुओ पृष्ठ २१०)