Atmadharma magazine - Ank 156
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४८२ आत्मधर्म (‘ब्रह्मचर्य अंक’–बीजो.) : २१७ :
पू. गुरुदेव द्वारा जैनधर्मनी महान प्रभावना
एक साथे १४ कुमारिका बहेनोए लीधेली ब्रह्मचर्यनी दीक्षा
विलासिता उपर आध्यात्मिकतानो महान विजय
अमारा साधर्मीबंधुओने एक महान समाचार देतां अमने अत्यंत हर्ष थाय छे के, आ दसलक्षणी–
पर्युषणपर्वना पहेला दिवसे–भादरवा सुद पांचम ने रविवारना शुभ दिने, परम पूज्य सद्गुरुदेवना उपदेशथी
प्रभावित थईने १८ थी २६ वर्षनी नानी नानी उमरना चौद १४ कुमारिका बहेनोए आजीवन ब्रह्मचर्य–
प्रतिज्ञा अंगीकार करी छे. आ ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञा जे उदे्शथी धारण करवामां आवी छे तेनी खास महत्ता छे,–ते
आपणे आगळ जतां जोईशुं.
आम तो आ युगमां परमपूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामी द्वारा दिगंबर जैनधर्मनी महान
प्रभावनानां कार्यो एक पछी एक थया ज करे छे, अने अमारा साधर्मीबंधुओ एनाथी परिचित पण छे; आजे
तो पू. गुरुदेवनो प्रभाव भारतभरमां प्रसरी गयो छे. तेमां वळी आ १४ कुमारिका बहेनोए ब्रह्मचर्यनी
प्रतिज्ञा लीधी ते पण जैनधर्मनी प्रभावनानो एक एवो ज महान प्रसंग छे.
मात्र ब्रह्मचर्यपालनना शुभरागमां अटकी जवानो आ बहेनोनो उदे्श नथी, तेओनो उदे्श तो निवृत्त
जीवनपूर्वक आगळ वधीने आत्महितनी साधना करवानो छे. कोई पण उपदेशकना प्रभावथी एक साथे १४
कुमारिका बहेनोए, मात्र आत्महितनी साधना अर्थे आ रीते पोतानुं जीवन समर्पित करी दीधुं होय–एवुं
हालना ईतिहासमां सांभळवामां आवतुं नथी. परमपूज्य गुरुदेवनो उपदेश केटली सरलताथी जीवोने
आत्महितमां लगाडी द्ये छे, अने ते उपदेश केटलो वीतरागता भरेलो छे–तेनुं अनुमान विवेकी जिज्ञासुओ आ
महान प्रसंग उपरथी करी शकशे. पू. गुरुदेवनो आत्मस्पर्शी उपदेश अनेक जीवोनां जीवन पलटावी नांखे छे.