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आनंद भर्यो छे एटले त्यां जरूर गमशे.....माटे आत्मामां गमाड.
जगतमां क्यांय गमे तेवुं नथी पण एक आत्मामां जरूर गमे तेवुं छे.
माटे तुं आत्मामां गमाड.”
करवानुं. आवा अशरण संसारमां देव–गुरु–धर्मनुं ज शरण छे. पू.
गुरुदेवे बतावेला चैतन्यशरणने लक्षगत करीने तेना द्रढ संस्कार
आत्ममां पडी जायए ज जीवनमां करवा जेवुं छे.”
देशे. आत्मानी खरेखरी लगनी लागे ने अंदरमां मारग न थाय–एम
बने ज नहि.......आत्मानी लगनी लागवी जोईए....... तेनी पाछळ
लागवुं जोईए...आत्माने ध्येयरूप राखीने दिनरात सतत प्रयत्न करवो
जोईए.... ‘केम मारुं हित थाय’.....‘केम हुं आत्माने जाणुं!’..... एम
लगनी वधारीने प्रयत्न करे तो जरूर मार्ग हाथ आवे.”
बधाय पामे.....अमारा जेवुं सुख बधा जीवो पामे....”
थई गयुं छे.....आत्मामां एकधारुं परिणमन वर्त्या ज करे छे”
प्रकाशक:–श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, वल्लभविद्यानगर (गुजरात)