Atmadharma magazine - Ank 157
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष चौदमुं : संपादक : कारतक
अंक पहेलो रा म जी मा णे क चं द दो शी २४८३
नूतन वर्षनो मंगल संदेश
नूतन वर्षना मंगल संदेशमां पू. गुरुदेव कहे छे के भेदज्ञानना फळरूप
केवळज्ञानमय सुप्रभात जगतने मंगळरूप हो! केवळज्ञानरूप दिव्य सुप्रभात
प्रगटवानुं सामर्थ्य दरेक आत्मामां परिपूर्ण छे... हे जीवो! तेनी प्रतीत करीने
सम्यग्दर्शनरूप मंगल–प्रभात प्रगटावो. चैतन्य–प्रभुतानी श्रद्धा करवी ते मंगळ
छे, तेनुं ज्ञान करवुं ते मंगळ छे, तेमां एकाग्रता करवी ते मंगळ छे; अने ते
श्रद्धा–ज्ञान–एकाग्रताना फळरूप दिव्य केवळज्ञानमय प्रभात झळहळी ऊठे ते
जगतने उत्कृष्ट मंगळरूप छे.
प्रभुजी तारा पुनित पगले.
आसो वद अमासना परोढिये पावापुरी धाममां महावीर भगवान
अभूतपूर्व सिद्धपदने पाम्या.... भव्य जीवोनुं परम ईष्ट अने अंतिम ध्येय एवुं
मोक्षपद भगवाने आजे प्राप्त कर्युं... ने भगवाननी मुक्तिनो मोटो महोत्सव
ऊजवायो... ए परम आनंदमय मोक्षपदना स्मरण मात्रथी आजेय मोक्षार्थीनां
हैयां नाची ऊठे छे... ने मोक्षार्थी भक्तो उल्लासथी कहे छे के हे भगवान! आप
तो मुक्तिपुरीमां सीधाव्या... ने आपश्रीना स्वाश्रयना उपदेशने झीलीने अमे
पण आपना पुनित पगले चाल्या आवीए छीए...
वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)