दैनिकनी पाछळ तेओ रातदिन तनतोड महेनत करता. आ उपरांत प्रतिष्ठा महोत्सवना कार्योमां, मुंबई
जिनमंदिरना कामकाजमां, तथा छेल्ले छेल्ले सम्मेद शिखरजी यात्रासंघना प्रोग्राम अने व्यवस्था बाबतमां तेओ
घणी ज चीवट अने लागणीपूर्वक बधुं कार्य संभाळी रह्या हता... आ बधा कार्योमां आजे तेमनी घणी मोटी
खोट पडी गई छे. प्रवचन–प्रसाद दैनिकना तो तेओ एवा प्राण हता... के आजे हवे तेमना वियोगमां ए दैनिक
बंध करी देवानी परिस्थिति ऊभी थई छे. तेओनी वांचनशैलि पण घणी शांत अने मीठी हती... ज्यां ज्यां
शनिवारनी सवारमां पांच वागे तेओ ऊठया ने हंमेशनी टेव प्रमाणे वांचता हतां. तेमना धर्मपत्नी जयाबेने
तेमने तबीयतना समाचार पण पूछेला; त्यारे कहे के “मने ठीक छे, तमे सुई जाओ” हजी पांच वागे तो आम
वातचीत थाय छे... ने पोणा छ वागतां तो हार्टफेईलथी तेमनो स्वर्गवास थई गयो. तेमनी उमर मात्र ४३
वर्षनी हती... छ–सात वर्ष पहेलांं तेमणे सजोडे पू. गुरुदेव पासे आजीवन ब्रह्मचर्यनी प्रतिज्ञा लीधी हती. पू.
गुरुदेव तेमने ‘पंडितजी’ तरीके संबोधन करता अने तेमने एक ‘मूंगा सेवक’ तरीके ओळखावता. पू. गुरुदेव
पण घणी वार कहे छे के तेओ घणा पात्र जीव हता, रूडा जीव हता; तेओ आत्मार्थी, वैरागी, उदार अने
समाचार काने पडतां प्रथम तो ते मानी शकाता नथी... ने एम थाय छे के अरे! आ शुं सांभळीए छीए!
सोनगढ, मुंबई, सुरेन्द्रनगर, वांकानेर वगेरे अनेक शहेरोना मंडळमां आ समाचारथी हाहाकार छवाई गयो
छे. परंतु आ देहनी अनित्यताना कुदरतना नियम आगळ समाधान सिवाय बीजो कोई उपाय नथी... आ
प्रसंग बन्यो तेना आगला दिवसे तो पू. गुरुदेव प्रवचनमां एम कहेता हता के “आ देह तो आज छे ने काल
नथी; आ मनुष्य जीवन क्षणभंगुर छे; तेमां देहथी भिन्न चैतन्यतत्त्वनुं सत्समागमे भान करी लेवुं–ए ज
शरणरूप छे.” ए वखते कोने खबर हती के बीजे ज दिवसे आवी क्षणभंगुरतानो आवो मोटो प्रसंग बनी
जशे!! वस्तुस्थिति ज एवी छे–त्यां बीजो शो उपाय!!
तीर्थधामनी यात्रा माटेनी तेमनी उग्र भावना पण पूर्ण थाओ. टूंका वखतमां पण तेमणे पोताना जीवनने सफळ
बनाव्युं छे; अने बीजा मुमुक्षुओने पण उदाहरण आपता गया छे के टूंका जीवनमां पण घणुं करी शकाय छे.
पमाडे तेवुं छे. अमृतलालभाईनी साथे साथे तेमणे पण सत्समागमे आत्महितनी भावनाओ भावीने आत्मामां
सुसंस्कारो पाड्या छे; ने तेना बळे अत्यारे तेओ घणुं धैर्य राखी शक्या छे. –आ बधो संतोना सत्समागमनो
प्रताप छे. महाभाग्ये प्राप्त थयेलो आ मनुष्य अवतार अने तेथी पण महाभाग्ये प्राप्त थयेल ज्ञानीओनो
सत्समागम, –तेमां आवा प्रसंगोनुं उदाहरण लईने आत्मार्थी जीवोए शीघ्र आत्महित साधवा जेवुं छे.