Atmadharma magazine - Ank 159
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष १४ मुं
अंक ३ जो
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२४८३
वीतरागी संतनी वाणी : जैन धर्मनी महत्ता
चैतन्यना आनंदनी मस्तीमां झूलता ने वनमां वसता वीतरागी संतनी आ वाणी छे –
जैनधर्मनी महत्ता ए छे के मोक्षना कारणभूत सम्यग्दर्शनादि शुद्ध भावनी
प्राप्ति तेमां ज थाय छे; मोक्षनो मार्ग जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते जैन
शासनमां ज यथार्थ छे...जैन शासनमां सर्वज्ञ भगवाने कहेला चैतन्य स्वभावनी
श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रथी ज मोक्षना कारणरूप शुद्धभाव थाय छे, तेथीज जैनधर्मनी
श्रेष्ठता छे; माटे हे जीव! आवा शुद्धभाववडे ज जैनधर्मनो महिमा जाणीने तुं तेने
अंगीकार कर, अने रागने–पुण्यने धर्म न मान. जैनधर्ममां तो भगवाने एम कह्युं
छे के पुण्यने ज धर्म माने छे ते केवळ भोगने ज ईच्छे छे, केमके पुण्यना फळमां तो
स्वर्गादिना भोगनी ज प्राप्ति थाय छे; तेथी जेने पुण्यनी भावना छे तेने भोगनी
ज एटले के संसारनी ज भावना छे, पण मोक्षनी भावना नथी.