Atmadharma magazine - Ank 159
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Regd No. B, 4787
अ.म.त. व.च.न
(१) आतमाराममां रहेवुं ते ज खरो आराम छे.
(२) स्वभावनी सन्मुख थया विना सुख हराम छे.
(३) भाई! एक वार तारी चैतन्यविभूतिने नजरमां तो ले!
(४) शुद्ध–आत्माने द्रष्टिमां लेवो ते दर्शनशुद्धि छे.
(५) दर्शनशुद्धि करवी ते ज खरी शुद्धि छे.
(६) सर्व प्रकारना उद्यमथी पहेलांं दर्शनशुद्धि करो.
(७) ‘दर्शनशुद्धिथी ज आत्मसिद्धि’ ए जैन धर्मनो मुद्रालेख छे.
(८) तारा आनंद स्वभावनी वात सांभळीने हे जीव! तुं
उल्लासित था.
(९) आत्मा समजवानी जे ना पाडे छे ते भवथी छूटवानी ना
पाडे छे.
(१०) जे पोतानुं हित साधवा जाग्यो तेने रोकनार जगतमां
कोई नथी.
अपराधी अने निर्दोष
• शुद्ध आत्मा सिवाय परद्रव्यना ग्रहणनी बुद्धि ते
अपराध छे; ने ते अपराधनुं फळ संसारनी जेल छे.
• शुद्ध आत्मानुं ज स्वद्रव्यपणे ग्रहण (एटले के तेनी
श्रद्धा, तेनुं ज्ञान ने तेमां लीनता) निरपराधपणुं छे,
ने तेनुं फळ मुक्ति छे.
–पू. गुरुदेव.
प्रश्न:– अपराधी कोण?
उत्तर:– जे परद्रव्यने पोतानुं माने ते.
प्रश्न:– निरपराधी
कोण?
उत्तर:– जे पोताना शुद्ध आत्माने ज पोतानुं माने छे,
ने ते सिवाय किंचित् पण परद्रव्यने पोतानुं
मानतो नथी ते.
प्रश्न:– बंधन थवानी शंका कोने पडे?
उत्तर:– जे अपराधी होय तेने.
प्रश्न:– ‘हुं नहीं ज बंधाउं’ एवी निःशंकता कोने
होय?
उत्तर:– जे जीव निरपराधी होय तेने.
जुओ, समयसार गा. ३०१–२–३
मुद्रक:– हरिलाल देवचंद शेठ, आनंद प्रिन्टींग प्रेस, भावनगर (सौराष्ट्र)
प्रकाशक:– स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती हरिलाल देवचंद शेठ–भावनगर (सौराष्ट्र)