Atmadharma magazine - Ank 159
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: पोष: २४८३ आत्मधर्म : १९ :
स्थान आ मनुष्य लोकमां नथी, तेनुं फळ भोगववानुं स्थान तो नरक छे. त्यां हजारो फांसी करतां पण वधारे
दुःख छे. आवा नरकना भीषण दुःखो जीव अनंतवार भोगवी आव्यो छे, माटे अरे आत्मा! हवे तुं चेत अने
आत्माना ज्ञानानंद स्वरूपनुं श्रवण कर.
ज्ञानानंदस्वरूपनुं यथार्थ श्रवण क्यारे कर्युं कहेवाय? के ज्यारे तेने लक्षमां लईने समजे त्यारे; समजे तो
ज यथार्थ श्रवण कर्युं कहेवाय. अहीं आचार्यदेव समजावे छे के–अरे जीव! तारा आत्मामां आनंद तो छे, पण
अज्ञानने लीधे तने ते अव्यक्त छे, माटे यथार्थ ज्ञान करीने ते: आनंदने व्यक्त कर. सर्वज्ञ भगवंतोने जे आनंद
प्रगट्यो ते क्यांथी प्रगट्यो? अंदर आत्मशक्तिमां हतो तेमांथी ज प्रगट्यो छे. जेम चोसठपहोरी तीखास
लींडीपीपरनी शक्तिमां रहेली छे तेमांथी ज ते व्यक्त थाय छे, तेम ज्ञान ने आनंदनी शक्ति आत्म–स्वभावमां
भरेली छे, तेमांथी ज ते व्यक्त थाय छे. ते व्यक्त थवानो उपाय अहीं समजावे छे.
भाई! तारा आत्माना ज्ञान वगर तने तारो आनंद वेदनमां नहि आवे. जेम मडदांने खबर नथी के हुं
कोण छुं? तेम ‘मारो आत्मा कोण छे’ तेनी जेने खबर नथी ते पण मडदा जेवा छे, शास्त्रकार तेने ‘चालतुं
शब’ कहे छे; केमके आ शरीर ते तो जड कलेवर छे, तेने ज ते पोतानुं स्वरूप माने छे, पण देहथी भिन्न
चैतन्यस्वरूप हुं छुं–एम ते पोताने जाणतो नथी. भाई, तारी आनंदशक्ति अनादि काळथी बिडाई रहेली छे,
हवे तेनुं भान करीने तारा आनंदने तुं व्यक्त कर.
आत्मामां आनंद स्वभाव छे तेनी ऊलटी दशा ते ज संसार छे; ते सिवाय बहारमां शरीर–स्त्री–मकान
वगेरेमां कांई आत्मानो संसार रहेतो नथी; आत्मा तो बीजे चाल्यो जाय छे ने ते बधा तो अहीं पड्या रहे छे.
स्त्री आदि छूटया माटे आत्मानो संसार छूटी गयो एम नथी. संसार तो आत्मानी अरूपी विकारी हालत छे.
आत्माना आनंदनुं भान करीने तेमां एकाग्र थतां आत्मामांथी अज्ञान अने रागादि छूटी जाय छे, एटले
आत्मानो संसार छूटी जाय छे.
हे भाई! तारुं सुख ने तारी प्रभुता तारामां ज भर्या छे–ए वात तने बेसे छे? पहेलांं आ वातनुं
गुरुगमे ज्ञान कर. वारंवार सत्समागमे आ वातनुं श्रवण कर, वारंवार तेनुं मनन कर..... ने वारंवार तेनो
अभ्यास कर. सम्यग्ज्ञानरूपी चक्षुवडे आ चैतन्यनो आनंद व्यक्त थाय छे. जेम सूर्य घुवडने नथी देखातो तेम
आत्मामां आनंद भर्यो होवा छतां अज्ञानथी अंध जीवोने ते देखातो नथी. सम्यग्ज्ञानरूपी चक्षु जेने ऊघडी
गयां छे ते पोताना आनंदने व्यक्तरूपे अनुभवे छे.
भजुओ, घणा जीवोने पूर्वना अनेक भवोनुं घणा वर्ष पहेलांंनुं जातिस्मरण ज्ञान थाय छे. आ देहमां
आव्या पहेलांं हुं क्यां हतो–तेनुं भान करनार जीवो अत्यारे पण अहीं छे. देहथी पार ज्ञानस्वरूप हुं छुं–एवी
यथार्थ समजण एक क्षण पण करे तो अनंत भवनो नाश करीने ते जीव अल्पकाळमां परमात्मा थया विना रहे
नहि. धर्मनी शरूआत सम्यग्दर्शनथी थाय छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप भाव ते मोक्षमार्ग छे. ज्ञानचक्षु
खोलीने जेणे आत्माने जाण्यो तेने अल्पकाळमां जन्ममरणनो अंत आवी जाय छे ने ते मुक्ति पामे छे.
आत्मा अतीन्द्रिय छे, ते आंखथी देखाय तेवो नथी. ईन्द्रियोथी देखाय ते आत्मा नहि, ने आत्मा
ईन्द्रियोथी देखाय नहि. सम्यग्ज्ञानरूपी चक्षुवडे ज आत्मा जणाय छे. अरे, मारा आत्माने ओळखीने हवे हुं
आ जन्ममरणथी केम छूटुं? ने मारा आत्माने शांति केम थाय! –एम अंदरथी आत्मानी समजणनो रस
जागवो जोईए. आत्मानो आवो रस जेने लाग्यो तेने सत्समागमे सम्यग्ज्ञानवडे आत्मानुं भान थाय छे.
एक वार जे आत्माने जाणे तेने तेना आनंदनो स्वाद आवे ने पछी तेनुं ध्यान करतां करतां ते साक्षात्
परमात्मा बनी जाय छे.
आचार्यदेव कहे छे के–अहो! आ जगतमां सारमां सार उत्तम वस्तु होय तो ते आ चैतन्यस्वरूप आत्मा
ज छे. जगतनो महिमा जेने छूटी गयो छे ने आत्मानो अनंतो महिमा आव्यो छे ते आत्माने नमस्कार करे छे,
आत्माना स्वभाव तरफ वळे छे. आत्मानो स्वभाव समजीने तेनो महिमा करवाथी ने तेमां लीन थवाथी जन्म–
मरणनो अंत आवे छे, माटे सत्समागमे आत्मानुं सम्यग्ज्ञान करवुं जोईए.