आ चैतन्यस्वरूपी आत्मा पोते अनंतशक्तिवाळो देव छे, पोते ज
आराध्य छे, माटे तेनी सन्मुख थईने तेनी ज आराधना करवी. तेनी
आराधनानुं फळ मोक्ष छे.
होय नहि; तेमज पोतानी पर्यायमां जे शुभ–अशुभ रागादि भावो थाय छे
ते तो स्वयं अपराधरूप छे–विराधकभाव छे, तो तेनी आराधना करवानुं
केम होय? माटे परचीज के विकार ते आत्मानुं आराध्य नथी, पण परथी
भिन्न तेमज विकारथी रहित एवो जे पोतानो अचिंत्य चैतन्य शक्तिसंपन्न
स्वभाव छे ते ज आराध्य छे, तेनी आराधनाथी ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र–तप अने: मोक्ष पमाय छे. जेओ आवा आत्मस्वभावनी आराधना
करे छे तेओ ज आराधक छे; अने जेओ आवा आत्मस्वभावनी आराधना